Sunday, September 26, 2010

कभी-कभी...!!

कभी-कभी मन को लगता है, ये जो भी है बेमानी है....!
थोड़ी सी ख़ामोशी है, और थोड़ा सा खारा पानी है....!!

एक पल प्यारी खुशी है, और एक पल रात बड़ी अंधियारी है....!
कुछ नग्मो में दर्द छुपा है, और कुछ में हसी सुहानी है....!

कभी-कभी हर रस्ते पर, कोई बीती हुई कहानी है....!
हर मंजिल पर लोग नए हैं, अपनों की कमी पुरानी है....!!

कुछ बातें बेमतलब हैं, और कुछ में मतलब भारी है....!
नाम नए-नए हैं अक्सर, और कुछ से पहचान पुरानी है....!!

कभी-कभी कुछ खास है मुझमे, और कभी कहीं कुछ खाली है....!
अंजान दिशाएं हैं सारी, हर ख्वाब में वही कहानी है....!!

जीने की गुंजाइश भी कम है, और हाथ दुआ से खाली हैं....!
कभी-कभी ग़म दूर कहीं है, और दुनिया रंगों की प्याली है....!!

कभी-कभी मन को लगता है...................................!
थोड़ी सी ख़ामोशी है............................. ..................!!

Saturday, September 18, 2010

कुछ नहीं है ये मगर...!!

सूरज को ढलते मैंने बरसों से देखा नहीं....!
हो गए हैं दिन बहुत मै चैन से सोया नहीं....!!
आवाज में ख़ामोशी है कुछ और दुआ है बेअसर....!
नाम अंजाना है मेरा, खुद से हूँ मै बेखबर....!!
कुछ नहीं है ये मगर, फिर भी है क्यूँ इतना असर....!
कुछ नहीं है ये मगर, फिर क्यों दुआ है बेअसर....!!

अंजान है सब मेरे लिए, कोई जाना पहचाना नहीं....!
सब लोग मुझसे हैं खफा, कोई मिलने आता नहीं....!!
वक़्त काफी है हो चुका, सब भूल गए हैं मुझको....!
परछाई भी मेरी तो अब, कैद समझती है खुद को....!!
कुछ नहीं है ये मगर फिर........................!
कुछ नहीं है ये मगर फिर .......................!!

मौसम का बदलना भी मुझे तो, अब नज़र आता नहीं....!
कोरे कागज जैसा है सब, कुछ लिखा भाता नहीं....!!
सब पूछते हैं घर का पता, नाम और पहचान भी....!
हूँ मै खुद से थोडा खफा, और कुछ नाराज़ भी....!!
कुछ नहीं है ये मगर फिर........................!
कुछ नहीं है ये मगर फिर .......................!!

आवाज देता हूँ तुझे, पर तू मुझे सुनता नहीं....!
सब यहाँ चुप-चाप हैं, कोई बात ही करता नहीं....!!
नकली हसी हसतें हैं सब, दिल में सभी के चोर है....!
खामोश बैठा हूँ मै लेकिन, सब तरफ बस शोर है....!!
कुछ नहीं है ये मगर फिर........................!
कुछ नहीं है ये मगर फिर .......................!!

Sunday, September 12, 2010

शीशों की दुनियाँ...!!

मै शीशों की इस झूठी दुनियाँ में ऐसे कैसे जी पाउँगा....!
तेरा साथ न मिल पाया तो मै उलझन में खो जाऊंगा....!!

सब बेगाने लोग मिलेंगे और बेगानी बातें होंगी....!
तेरे बिन मीलों सन्नाटा और सारी राहें खाली होंगी....!!

आवाजों में बेहद ख़ामोशी और आँखों में गहरी लाली होगी....!
सूरज का रंग फीका होगा और रात सुर्ख काली होगी....!!

मै खुद की ही सूरत को आईने में धुंधला सा पाउँगा....!
याद करूँगा बीती बातें और भूखा ही सो जाऊंगा....!!

सरगम में भी सुर कम होंगे और महफ़िल खाली-खाली होगी....!
आँखों के नीचे काली झाँई और परछाई मेरी आधी होगी....!!

मै शीशों की इस झूठी दुनियाँ में....................!
तेरा साथ न मिल पाया तो मै.......................!!

अहसास...!!

जब मै उसको देखूं तो चेहरे का रंग बदल जाना....!
महफ़िल से अक्सर उसके बिन तनहा घर वापस आ जाना....!!

उसकी बातें करके फिर धीरे-धीरे चुप हो जाना....!
और सर्द हवा के चलने से उसके होठों का फट जाना....!!

खामोश रात के सन्नाटे में उसके अहसास से जग जाना....!
आवाज को उसकी सुन करके कलियों का धीमे से खिल जाना....!!

कोई ग़ज़ल,गीत और नज्म लिखूं तो उसका हर लफ्ज में आ जाना....!
और सावन में बदरी बनकर उसका अम्बर पे छा जाना....!!

मेरी हर एक उलझन को उसका पलभर में सुलझा जाना....!
कोई बात अगर न सही लगे उस बात पे मुझसे लड़ जाना....!

उसकी पलकों पे कोहरे की हल्की चादर का बिछ जाना....!
और गर्मी के मौसम में उसके माथे पे पसीना आ जाना....!!

उसके हाथों की महंदी का रंग सुर्ख गुलाबी हो जाना....!
और अक्सर जाते-जाते उसका कुछ बातें दोहरा जाना....!!

जब मै उसको देखूं तो.........................................!
महफ़िल से अक्सर उसके बिन ...........................!!

Thursday, September 9, 2010

वो बचपन...!!

जब बचपन में छुप-छुप कर हम पतंग उड़ाया करते थे....!
और माली की छोटी बगिया से जब आम चुराया करते थे....!!
जब किसी के बनते घर में हम लुक-छुप जाया करते थे....!
और बैट-बाल में जब अक्सर हम लड़ भी जाया करते थे....!!
अब तब की बातें याद करूँ तो हसना-रोना आ जाता है....!
आँखों में थोड़ा सा पानी और मन भरमा सा जाता है....!!

जब शाम को घर से बाहर जाने की जल्दी होती थी....!
और बातों ही बातों में जब टांग खिचाई होती थी....!!
जब होली पर पक्के रंग से यारों को भिगाया जाता था....!
और उनकी शक्लों को दिखा के फिर लोगों को हसाया जाता था....!!
अब तब की बातें याद करूँ तो..............................!
आँखों में थोड़ा सा पानी और................................!!

जब पेपर में कभी हमारे नंबर कम आया करते थे....!
और घर जाकर बतलाने में हम घबराया करते थे....!!
जब दीवाली में चुन कर हम कुछ नए पठाखे लाते थे....!
और यारों के संग मिलकर जब जोर से उन्हें छुड़ाते थे....!!
अब तब की बातें याद करूँ तो..............................!
आँखों में थोड़ा सा पानी और................................!!

जब जरा-जरा सी बातों पे हम खुलकर हस जाया करते थे....!
और रोने में भी जब अक्सर हम हद कर जाया करते थे....!!
लोगों के लाख मानाने पर मुश्किल से माना करते थे....!
और मान भी जाया करते तो शर्तें बतलाया करते थे....!!
अब तब की बातें याद करूँ तो..............................!
आँखों में थोड़ा सा पानी और................................!!

Tuesday, September 7, 2010

जो ये होता है...!!

गुस्से से हाथ झटक देना, और आँखों में नीर का आ जाना....!
तन्हाई में घण्टों चुप रहना, और कोई याद पुरानी आ जाना....!!
धड़कन का कुछ धीमे होना, और चाँद का जल्दी आ जाना....!
परछाई का झिलमिल हो जाना, और खुद का खुद में खो जाना....!
क्या है जो ये होता है, ये भ्रम है या फिर धोखा है....!
कोई रोग है या अहसास कोई, या भोले से मन का राग कोई....!!

कुछ बातों का डर लगना, और खुली हवा में पर लगना....!
मन का खाली-खाली होना, और हर पल का सवाली होना...!!
दिल के पर्दों का नम होना, और छोटी बातों का ग़म होना....!!
तारों का चाँद के संग आना, और मस्त हवा का लहराना....!!
क्या है जो ये होता है.......................................!
कोई रोग है या अहसास कोई.............................!!

दिन का जल्दि से कट जाना, और खुलि किताबें रह जाना....!
औरों की न बातें करना, कुछ सोचते-सोचते सो जाना....!!
बैठे-बैठे ही मुस्काना, और श्याही का ख़त पर बह जाना....!
आवाज किसी की न सुनना, और बिना बात के लड़ जाना....!!
क्या है जो ये होता है.........................................!
कोई रोग है या अहसास कोई............................!!

मौसम का सर्द से नम होना, और दुनिया के शोर का कम होना....!
हवा का पर्दों को छू कर जाना, और बारिश का सुबह-सुबह आना....!!
कोई चीज़ पुरानी ग़ुम होना, और सोच के फिर गुमसुम होना....!
अक्सर बातों को दोहराना, हर दुआ में तेरा नाम आना....!!
क्या है जो ये होता है...........................................!
कोई रोग है या अहसास कोई..............................!!

Friday, September 3, 2010

पतझर पन्ने और पानी...!!

जब कभी सुनहरी हवा मेरे दरवाजे से होकर जाती है....!
और जब पतझर के सूखे पत्ते हवा के संग बह आते हैं....!!
जब सावन की पहली बोछारें आँगन में आ जाती हैं....!
और जब मिट्टी की सौंधी खुशबु खिड़की से भीतर आती है....!!
तब जीवन के मौसम मुझको अजब सुहाने लगते हैं....!
सारी दुनिया के रंग मुझे तब खुले फुहारे लगते हैं....!!

जब रंग-बिरंगे फूल हवा में लहराते इठलाते हैं....!
और जब कापी के कोरे पन्ने श्याही से मेल मिलाते हैं....!!
जब तितली के पंख सुनहरे कोई जादू सा दिखलाते हैं ....!
और जब जुगनू कभी रात में भ्रम का जाल बिछाते हैं....!!
तब जीवन के मौसम मुझको..................................!
सारी दुनिया के रंग मुझे तब...................................!!

जब रोज सवेरे सूरज कुछ जल्दी ही उग आता है....!
और शाम का सूरज सागर की लहरों में घुल जाता है....!!
जब रात में तारे आसमान की चादर को चमकाते हैं....!
और जब चाँद कटोरी जैसे झूल हवा में जाता है....!!
तब जीवन के मौसम मुझको..................................!
सारी दुनिया के रंग मुझे तब...................................!!