Tuesday, November 30, 2010

ख्वाहिशें ...!!

ख्वाहिश है परों को पाने की, पंछी बन के उड़ जाने की....!
इस हवा से दौड़ लगाने की, सूरज से जल्दी आने की....!!
दुनिया को गोल घुमाने की, एक हाथ से चाँद छुपाने की....!
मिट्ठी से महल बनाने की, पानी पर नाव चलाने की....!!

ख्वाहिश है अम्बर पे छाने की, गर्मी में बर्फ गिराने की....!
फूलों से महक चुराने की, और संग कोयल के गाने की....!!
परछाई को गले लगाने की, पहली बारिश में नहाने की....!
खुद को आवाज लगाने की, और लम्बी सैर पे जाने की....!!

ख्वाहिश है मंजिल को पाने की, उम्मीद को और बढ़ाने की....!
तुझसे फिर एक बहाने की, और एक अरमान सजाने की....!!
अपनी तस्वीर बनाने की, कल को फिर से दोहराने की....!
कुछ गहरे राज़ छुपाने की, सागर पर चलकर जाने की....!!

ख्वाहिश है परों को पाने की.................................!
इस हवा से दौड़ लगाने की..................................!!

Saturday, November 27, 2010

माँ...!!

माँ तूने बेहद आसानी से जीना मुझको है सिखलाया ....!
तेरे हाथों की ठंडक ने गर्मी में मुझको सहलाया....!!
माँ तूने मेरे उलझे बालों को अपने हाथों से सुलझाया....!
और अपनी नर्म हथेली से तूने मुझको है थपकाया ....!!

माँ तेरी गोद के जैसा मैंने स्वर्ग नहीं कहीं पाया....!
डर मुझको जो लगा कभी तूने मुझको है समझाया....!!
माँ तेरी हलकी सी डांट में भी मुझको तो प्यार नज़र आया....!
और तूने मेरा मन पढ़कर हर मुश्किल का हल पाया....!!

माँ तूने ही सारे रंगों से वाकिफ मुझको है करवाया....!
क्या सच है, है क्या झूठा तूने ही मुझको बतलाया....!!
तेरे आँचल के साए में ही मै बस चैन से सो पाया....!
और लिपट के तुझसे रोने में मैंने एक अजब सुकू पाया....!!

माँ तूने बेहद आसानी से जीना .................................!
तेरे हाथों की ठंडक ने गर्मी में..................................!!

Tuesday, November 23, 2010

एक दिन...!!

जब एक दिन चुपके से सूरज मेरी खिड़की पर आएगा ....!
और पिघल के अपनी ही गर्मी से वो काजल बन जायेगा....!!
जब एक दिन बादल की परछाई से चाँद निकल कर आएगा....!
और खुद की सर्द हवा से ही वो बर्फीला हो जायेगा....!!

जब मेरी कागज की कश्ती को दरिया साहिल तक लायेगा....!
और एक दिन जब खुद मुझसे मिलने वो मेरे घर आएगा....!!
जब हलकी सी सर्दी से ही कोहरा काफी छा जायेगा....!
और जब सूरज अपनी धूप का मुझसे इंतज़ार करवाएगा....!!

जब सब लोग सुनेंगे मुझको पर वो अन्सूना कर जायेगा....!
और वक़्त हरे ज़ख्मों को भी जब आसानी से भर जायेगा....!!
जब पूरे दिन का आधा हिस्सा बस बातों में जायेगा....!
और जब खुद का लिखा हुआ मुझको ज्यादा ही भायेगा....!!

तब मुझको इस दुनिया का कुछ अंदाज़ा सा लग जायेगा....!
और शायद तब खुदसे मिलने का मज़ा अलग ही आएगा....!!
तब मेरे सारे अल्फाजों को एक जरिया मिल जायेगा....!
और मेरी कुछ उम्मीदों को भी अपना घर मिल जायेगा....!!

जब एक दिन चुपके से सूरज................................!
और पिघल के अपनी ही गर्मी से...........................!!

Tuesday, November 16, 2010

क्यूँ...!!

क्यूँ  मुझको अक्सर लोगों की छोटी बातें हैं चुभ जाती....!
क्यूँ  मुझको मेरे ही भीतर की सूरत नज़र नहीं आती....!!

मै जो तस्वीर बनाता हूँ वो धुंधली क्यूँ  है हो जाती....!
क्यूँ अब पर्दों के हिलने पर भी एक सिहरन सी है उठ जाती....!!

क्यूँ  बीते लम्हों की कुछ यादें आवाजों से हैं टकराती....!
और क्यूँ  कुछ कहने वाली बातें अपनों से भी कही नहीं जाती....!!

क्यूँ मुझे किसी के चेहरे पर कोई उम्मीद नज़र नहीं है आती....!
और पल भर को भी क्यूँ ये दुनिया मतलब को भुला नहीं पाती....!!

क्यूँ मेरी ही खुद की ख़ामोशी इतना कुछ है कह जाती....!
और क्यूँ सब कुछ कह देने पर भी कहीं कमी है रह जाती....!!

क्यूँ  मुझको अक्सर लोगों की..................................!
क्यूँ  मुझको मेरे ही भीतर की.................................!!

Monday, November 15, 2010

My Lines For Me...!!

जब तुझ पर उम्मीदों का बोझ बहोत हो....!
और जब ग़म तेरी आँखों से छलके....!!
जब तू इस दुनिया के बीच अकेला हो....!
और बोझल हों नींद से तेरी पलकें....!!
तब मेरे अल्फाजों से तू बातें करना....!
और मेरे आँचल में चैन से सो जाना....!!

जब तुझको रंगों से प्यार ना हों....!
और खुद की बातें ही झूठ लगें....!!
जब मन तेरा खाली खाली सा हों....!
और जब तुझको अपने ही दूर लगें....!!
तब तू मुझमे ही घुल मिल जाना....!
और संग मेरे लफ्जों के सिल जाना....!!

जब तेरी आवाज में एक ख़ामोशी हों....!
और दुनिया की भीड़ ना भाती हो....!!
जब परछाई भी तुझसे अलग चले....!
और राहें सारी मुड़ जाती हों....!!
तब लिपट के मुझसे रो जाना....!
और जो भी ग़म हो बतलाना....!!

जब तुझ पर उम्मीदों का....................!
और जब ग़म तेरी आखों ....................!!

Saturday, November 13, 2010

उस दिन...!!

उस दिन जब तू मेरे संग बैठा था, तेरे चेहरे पर हल्का पहरा था....!
तू बातें कम करता था मुझसे, और सवाल ज्यादा करता था....!!

नाराज था तू मेरी बातों से, और खुद से शिकवे भी करता था....!
तू कुछ समझाना चाहता था मुझको, और खुद एक उलझन में उलझा था....!!

तुझसे मै गर सच कहता भी तो, तू उस पर भी शक करता था....!
मै तुझको कुछ समझाता भी तो, तू कसमें खाने को कहता था....!!

पल भर को तू अंजाना लगता था, और तुझसे गहरा नाता भी लगता था....!
और तेरी सारी बातें सुनकर, मुझको भी थोडा ग़म लगता था....!!

तुझसे सब कुछ न कह कर, बस कुछ ही कहना बेहतर लगता था....!
क्यों अपनी आवाज के सहमेपन से ही, तुझको इतना डर लगता था....!!

उस दिन जब तू मेरे संग बैठा था........................................!
तू बातें कम करता था मुझसे और ......................................!!

Tuesday, November 9, 2010

बाकी है...!!

कुछ लोगों से अभी मेरी पहचान का होना बाकी है....!
जो उड़ान भरनी है मुझको उस उड़ान का होना बाकी है....!!
बाकी है इस दुनिया की झूठी दीवारों से बाहर आना....!
और अभी मेरे भीतर बैठे अरमान का जगना बाकी है....!!

बरसों से खामोश रहे एक इंसान का उठना बाकी है....!
मन के पर्दों पर जमी हुई इस धूल का छटना बाकी है....!!
बाकी है प्यारे रंगों का कुछ खाली तस्वीरों में भरना....!
और अभी मेरे शहर का मुझसे दो बातें करना बाकी है....!!

कुछ प्यारी सी यादों को फिरसे दोहराना बाकी है....!
अभी मेरी आधी बातों का पूरा होना बाकी है....!!
बाकी है हर ख्वाहिश का खुल करके साँसे लेना....!
और अभी मेरा तुझसे मिलकर कुछ शिकवे करना बाकी है....!!

कुछ लोगों से अभी मेरी पहचान ...............................!
और अभी मेरा तुझसे मिलकर.................................!!