Wednesday, January 19, 2011

पर्दा...!!

























है ये तेरा भी हिस्सा और है मुझसे भी जुड़ा हुआ....!
तुझमे भी थोड़ा शामिल है और जरा है मुझमे घुला हुआ....!!

कभी छुपाता तेरा चेहरा और मेरे मन की गहराई भी....!
तेरे अपने राज़ भी कुछ और मेरी थोड़ी परछाई भी....!!

जो भी खाली है बचा हुआ ये उसका मतलब समझाता है....!
और ये पर्दा ही मुझको मेरे चेहरे से मिलवाता है....!!

इसकी आड़ के पीछे से मन सब बातें कह जाता है....!
और मेरी नज़रों को कभी-कभी ये सारे सच दिखलाता है....!!

ये पर्दा मेरी खातिर लोगों से आँख मिलाता है....!
रखता है दुनियाँ को धोखे में और मेरा साथ निभाता है....!!

झूठे रंगों से ये पर्दा पहचान मेरी करवाता है....!!
और तंग रास्तों से मुझको बेख़ौफ़ छुपा ले जाता है....!

है ये तेरा भी हिस्सा और है............................!
तुझमे भी थोड़ा शामिल है और........................!!

Friday, January 14, 2011

आईना...!!

























मै आज जरा बाहर निकला बाजार लगा था रस्ते में....!
कुछ खास नहीं मुझको भाया एक आईना लाया सस्ते में....!!
कागज के बंद लिफाफे से मैंने उसको बाहर रक्खा....!
घर का एक अच्छा कोना ढूंढा और वहां उसे लाकर रक्खा....!!
आईना कोने में रख कर फिर शाम का बिस्तर लगा दिया....!
बत्ति को मैंने बंद किया और आँखों को अपनी मूँद लिया....!!
सुबह सवेरे आँख खुली ठंडे पानी से मुह धोया....!
मै आईने के पास गया और उसमे अपना चेहरा देखा....!!
देखा मैंने कुछ गौर से जो मुझको कुछ अलग नज़र आया....!
कुछ तो बदला-बदला सा था या मुझको केवल भ्रम सा था....!!
चेहरे का रंग उड़ा सा था और आँखों के नीचे झाइयाँ थी....!
माथे पर धुंधली सलवटें सी थीं और गाल थे बेहद फटे हुए....!!
जी रहा था मै पुतले जैसा उस दिन कुछ ऐसा लगा मुझे....!
सब कुछ था लुटा हुआ जैसे और भीतर से सब खाली सा था....!!
पहचान मुझे मालूम न थि और हूँ क्या मै था नहीं पता....!
आईने से कुछ मदद मिली पता लगा पहचान का कुछ....!!
अगर न मै बाहर जाता और आईना न लेकर आता....!
खबर मुझे कैसे लगती और कौन मुझे सच बतलाता....!!
मै आज जरा बाहर निकला.............................!
कुछ खास नहीं मुझको भाया...........................!!

Sunday, January 2, 2011

आ बैठ जरा...!!
















                आ बैठ जरा मेरे संग भी, मेरी उलझन को भी सुलझा....!
क्यूँ होता है ये मेरे संग ही, तू मुझको इसका हल बतला....!!

चुप रहता है मन मेरा, मै नहीं किसी से कुछ कहता....!
मेरी अपनी ख़ामोशी का, तू मुझको कुछ मतलब समझा....!!

सारी बातों को ध्यान से सुन, और इनकी गहराई तक जा....!
समझ जरा मुझको थोड़ा, और क्या है मुझको मर्ज़ बता....!!

मेरे माथे की सलवटों को पढ़, कुछ दूर तलक मेरे संग आ....!
कुछ सुन मेरी कुछ सुना मुझे, मुझको कोई प्यारा ख्वाब दिखा....!!

सारी आदतों से वाकिफ है तू, है कहाँ कमी मुझको बतला....!
हिस्सा हूँ या किस्सा हूँ मै, तू मुझे मेरा होना समझा....!!

आ बैठ जरा मेरे संग भी.......................................!
क्यूँ होता है ये मेरे संग ही....................................!!