Tuesday, November 29, 2011

अरमान...!!





















न मुझसे ही कहा उसने....!
न तुझको ही खबर दी कुछ....!!
तेरी खवाहिश भी कम लगती है....!
मेरी हर आरजू भी है कम....!!
के उसका अरमान ही ऐसा है....!
जो वो लब से नहीं कहता....!!
वो एक उम्र से बैठा है....!
यूँ थामे हुए दिल को....!!
के मुलाकात का दिन जैसे....!
मुकरर रखा है पहले से....!!
बस अब इंतज़ार में है वो ....!
के कोई आहट सुनाई दे....!!
वो लिपट जाए फिर सनम से....!
और ये आँखे छलक आयें....!!
एक टक रहें नज़रें....!
वो पलकें भी ना झपकाए....!!
हो यूँ  पूरा ये किस्सा कुछ....!
के कुछ बाकी ना रह जाए....!!
रहे ना जुस्तजू ही कुछ....!
ना कोई अरमान रह जाए....!!
न मुझसे ही...............!
न तुझको ही.............!!

Tuesday, November 8, 2011

चल साथ चलें...!!

















    चल साथ चलें उस छोर तलक जिस छोर के आगे राह न हो....!
सारी ख्वाहिश बेमानी हों मन की कोई बाकी चाह न हो....!!
एक अजब सुकून सा हो दिल को सारा मंज़र मस्ताना हो....!
ये वक़्त का दरिया थम जाए ऐसा भी कुछ अफसाना हो....!!

पिघली-पिघली सी शाम हो कुछ सुलझा सा हो सारा आलम....!
हल्की-हल्की हो सर्द हवा बेहद हल्का हो मेरा मन....!!
मदहोशी हो चाँद-सितारों में सुल्गी-सुल्गी सी हो सांसें....!
पूरी दुनियाँ खामोश रहे बस तेरी मेरी ही हो बातें....!!

न होश ही बाकी बचा रहे न छायी पूरी बेहोशी हो....!
नज़रों में परछाई सी हो तेरी और रूह ये तुझमे डूबी हो....!!
सब कुछ थम जाए जम जाए पल सारे वहीँ ठहर जाएँ....!
बस एक लम्बी सी राह रहे और तू हाथ थाम चलता जाए....!!

चल साथ चलें उस छोर तलक.....................!
सारी ख्वाहिश बेमानी हों............................!!