एक कोने से दूर खड़ा मै इस दुनियां को देख रहा....!
किसके मन में है क्या-क्या और कौन है कितना भला-बुरा....!!
कौन है मेरा दोस्त यहाँ किसको है मुझसे प्यार बड़ा....!
क्यों कोई घुट रहा भीतर ही और किसका चेहरा है बुझा हुआ....!!
किसको खुद से है डर लगता क्यों सब कुछ यूँही है घटता....!
ना है अपनी पहचान कोई हर शक्श भटकता है फिरता....!!
ग़म रहता है क्यों इतना क्यों कोई नहीं खुल कर हँसता....!
क्यों झूठी है सारी दुनियां हर कोई है बस अपनी कहता....!!
दिल, दिमाग में सन्नाटा और होठों पर है ख़ामोशी....!
चुप-चाप बैठ कर ये दुनियां क्यों उलझी है खुद में रहती....!!
एक कोने से दूर खड़ा मै....................................!
किसके मन में है क्या-क्या और.........................!!
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