है धुआं अम्बर में क्यूँ, क्या जल रहा है आंच पे....!
तू रो रहा है सच बता, या गिर गया कुछ आँख में....!!
है इस कदर मायूस क्यूँ, नाराज़ अपने आप से....!
यूँ तो नहीं खामोश था, कुछ बात है इस बात में....!!
क्यूँ बन रहा अंजान तू, खुद अपनी ही पहचान से....!
ग़म है तुझे ऐसा भी क्या, क्यूँ है खफा हर नाम से....!!
रुक तो ज़रा पल के लिए, कुछ गुफ्तगू कर यार से....!
है अभी शुरुवात ये, तू डर गया क्यूँ हार से....!!
चलना अभी तो है बहुत, यूँ थक न हिम्मत हार के....!
हैं ठोकरें ये राह की, कर पार इनको प्यार से....!!
उढ़ परिंदे की तरह, आज़ाद इस आकाश में.....!
मंजिल तो खुद ही आएगी, कर यकीं तू आप पे....!!
है धुआं अम्बर में क्यूँ.....................!
तू रो रहा है सच बता......................!!
very realistic ...
ReplyDeletewritten very nice....
ReplyDeletelOVELY !!!!!! KEEP IT UP !!!!
ReplyDeleteविभू, हालातेहाल को खूबसूरती से बयान किया है
ReplyDeleteits the best u have written.....till now
ReplyDeletelovely :)