वो एक आम सी शाम थी यूँही हर शाम की तरह....!
लोग आते थे घरों से घरों को लौट जाते थे....!!
कोई मायूस दिखता था कोई बस मुस्कुराता था....!
नुक्कड़ पर खड़ा वो पेड़ भी शाखें हिलाता था....!!
हवा चुप-चाप बहती थी ना कोई शोर आता था....!
पलट कर देखा निगाहों ने के कोई और आता था....!!
ना जाने वो कौन था बला का नूर था उसमे....!
लगा यूँ देख कर उसको कहीं मौजूद था मुझमे....!!
बस नज़रें ही मिली उससे और गज़ब काम कर गयी....!
और वो आम सी शाम भी कुछ ख़ास बन गई....!!
वो एक आम सी शाम थी......................!
लोग आते थे घरों से...........................!!
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