Wednesday, March 16, 2011

एक कटी पतंग है...!!

















                                                                                           


जिंदगी है क्या यहाँ एक कटी पतंग है....!
डोर जिसमे है मगर हाथ से वो दूर है....!!
भूख है जिसमे छिपी प्यास से लाचार है....!
सांस तो बाकी है पर जीने का ना सामान है....!!
बचपन यहाँ है रो रहा, हर दवा नाकाम है....!
सोच में डूबी जवानी आखों में फिर भी आस है....!!
है उदासी हर तरफ लोगों में अब भी खौफ है....!
कैसे जियें किसको कहें हर तरफ बस शोर है....!!
अनजान रहते हैं सभी पहचान से डरतें है अब....!
चुप बैठ कर हैं देखते, होता है कैसे और कब....!!
मुह मोड़ कर बैठा है दिन रातों में घुप्प अँधेरा है....!
उगता है सूरज इस तरह यूँ उस पर भी कोई पहरा है....!!
जिंदगी है क्या यहाँ............................!
डोर जिसमे है मगर...........................!!

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