Thursday, August 30, 2012

ख्वाब...!!



अपने दरवाजे पर एक दस्तक सुनकर मै अपनी नींद से जागा....!
मेरे कुछ ख्वाब आये थे मुझसे मुलाकात की खातिर....!!
कुछ सवालों से भरे थे तो कुछ जवाब लाये थे....!
वो अपने चेहरों पर लिखी मेरी कुछ किताब लाये थे....!!
किताबों में किस्से थे मेरे और कुछ अरमान लिखे थे....!
फिर से दोहराने सारे अरमानों को वो मेरे पास आये थे....!!
उनको शिकवा था मुझसे के उन्हें याद नहीं करता....!
रख के सिरहाने पर कहीं मै उन्हें भूल जाता हूँ....!!
मै हर ख्वाब से कहता हूँ के मै भूला नहीं उसको....!
है अब भी इल्म हर एक ख्वाब की तासीर का मुझको....!!
अधूरा छोड़ कर एक ख्वाब भी कहीं जाने नहीं वाला....!
मेरा हर ख्वाब मोती है इन्हें खोने नहीं वाला....!!
अपने दरवाजे पर एक दस्तक सुनकर..............!
मेरे कुछ ख्वाब आये थे..........................!!

Thursday, July 19, 2012

मुस्कुराहट...!!



















 

मुस्कुराहट जिंदगी है, है ये जीने की अदा....!
हसरतों को पंख देदे है ये ऐसा फलसफा....!!
खिलखिलाकर तैर जाती है लबों पर इस तरह....!
यूँ के जैसे मस्त होकर सावन बरसने को लगा....!!

हर हसी में है छुपा अंदाज़ जीने का नया....!
एक नज़र जो देख ले इंसान अपना आईना....!!
सलवटें ये दूर करदे जिंदगी के शोर की....!
हो रहा महसूस जैसे हो किरण ये भोर की....!!

हस्ता हुआ चेहरा किसी से बैर रखता ही नहीं....!
कैसा भी ग़म हो किसी को बाँट लेता है यूँही....!!
इस हसी से ही दिलों के फासले मिट जाते हैं....!
और मीलों रास्ते पल भर में ही कट जाते हैं....!!

मुस्कुराहट जिंदगी है..............................!
हसरतों को पंख देदे...............................!!

Monday, June 18, 2012

इश्क...!!

























इश्क नाम है इसका नहीं आसान होता है....!
जिसे लग जाए ये झोंखा वो बेआराम होता है....!!

कुछ सरफिरे कहते हैं रहो दूर ही इससे....!
बेकार की चीज़ है ये तो बदनाम होता है....!!

कोई कहता है इश्क तो खुदा का नाम है दूजा....!
ये वो चीज़ है जिसमे सुकूं बेशुमार होता है....

तमाम उम्र गुजर जाती है बड़े प्यार से जिसमे....!
इश्क ऐसा ही एक अजब सा इंतज़ार होता है....!!

रगों में दौड़ता है ये लहू बन कर दीवानों के....!
ये इश्क ही तो असलियत में वफ़ा का नाम होता है....!!

इश्क नाम है इसका...........................!
जिसे लग जाए ये झोंखा.......................!!

Sunday, May 6, 2012

वो शाम...!!




वो एक आम सी शाम थी यूँही हर शाम की तरह....!
लोग आते थे घरों से घरों को लौट जाते थे....!!

कोई मायूस दिखता था कोई बस मुस्कुराता था....!
नुक्कड़ पर खड़ा वो पेड़ भी शाखें हिलाता था....!!

हवा चुप-चाप बहती थी ना कोई शोर आता था....!
पलट कर देखा निगाहों ने के कोई और आता था....!!

ना जाने वो कौन था बला का नूर था उसमे....!
लगा यूँ देख कर उसको कहीं मौजूद था मुझमे....!!

बस नज़रें ही मिली उससे और गज़ब काम कर गयी....!
और वो आम सी शाम भी कुछ ख़ास बन गई....!!

वो एक आम सी शाम थी......................!
लोग आते थे घरों से...........................!!

Sunday, April 22, 2012

ख़ामोशी...!!



















                             
एक अजीब सी ख़ामोशी है यहाँ चारो तरफ....!
जुबां पर कोई लफ्ज़ चाह कर भी नहीं आता....!!
ना जाने क्यूँ भाग रही है ये पागल दुनियां....!
इसे जीने का कोई मकसद नज़र ही नहीं आता....!!

साजो-सामान जुटा तो लिया जैसे-तैसे करके....!
कैसे जीना है इसके संग समझ ही नहीं आता....!!
तमाम उम्र गुज़र रही है भागते हांफ्ते....!
किसे कहते थे सुकून याद ही नहीं आता....!!

खुद को भूल गए वक़्त के साथ भागते-भागते....!
और कहाँ छूट गया वक़्त नज़र ही नहीं आता....!!
कैसे उलझी है ये मासूम सी प्यारी हस्ती....!
के अपना वजूद ही इसको समझ में नहीं आता....!!

एक अजीब सी ख़ामोशी.....................!
जुबां पर कोई लफ्ज़.........................!!

Saturday, March 17, 2012

जुस्तजू ...!!



















है जुस्तजू ये मेरी किसी दिन यूहीं निकल जाऊं....!
पता दूँ ना किसी को भी और ना संग ले जाऊं....!!

हवा हो जाऊं कुछ इस तरह के नज़रों में ना आ पाऊं....!
पकड़ एक छोर अम्बर का मै दूजे छोर उड़ जाऊं....!!

दिशाओं से दोस्ती करलूं जिधर चाहूँ वहां जाऊं....!
परिंदों की तरह मै भी गगन की सैर कर आऊं....!!

खुमारी हो मुझे ऐसी के मै खुद में ही खो जाऊं....!
हैं जितने रंग दुनियाँ के उन्ही रंगों से रंग जाऊं....!!

तलाशी लूँ हवाओं की समंदर से लिपट जाऊं....!
बाहं फैलाये ये धरती और बस मै बिखर जाऊं....!

है जुस्तजू ये मेरी..................................!
पता दूँ ना किसी को भी...........................!!

Sunday, January 29, 2012

कोई नहीं...!!



आज उन रास्तों से मै दोबारा गुजरा....!
जिन रास्तों से मेरा आना जाना था कभी....!!

अब वो पुरानी ईमारत भी नहीं दिखती मुझको....!
न चौराहे वाला वो पेड़ ही नज़र आता है कहीं....!!

सड़क के उस पार वो टीन की छत भी नहीं है अब....!
न कोई पहचान वाला ही नज़र आता है कहीं....!!

सब गुमनाम से चेहरें हैं यहाँ अब बाकी....!
शायद मै कुछ जरूर छोड़ आया हूँ कहीं....!!

अब तो कोई दोस्त की तरह मुखातिफ भी नहीं होता मुझसे....!
हाँ ये सच है के यहाँ अब मेरा कोई नहीं....!!

आज उन रास्तों से...........................!
जिन रास्तों से मेरा..........................!!