Friday, December 30, 2011

सोचा तुझको...!!























                                                                           
बहुत फुरसत से बैठ कर जब सोचा तुझको....!
वक़्त और हालात में जब ढाला खुदको....!!

तो पाया कि तू सिर्फ एक खयाल भर है....!
तू बस कतरन है मेरे बीते खयालों की....!!

जहन से मिट चुकी कोई धुंधली कहानी है....!
और इन आँखों से टपका कोई आंसू पुराना है....!!

तू वो याद है जिसका कोई मतलब नहीं बाकी....!
करता भी हूँ तो याद अब तेरी नहीं आती....!!

न जाने तेरा वजूद भी अब क्यूँ सच नहीं होता....!
हाँ अब तेरा होना भी तो होना नहीं होता....!!

बहुत फुरसत से बैठ कर......................!
वक़्त और हालात में जब....................!!

Thursday, December 1, 2011

मन...!!













                         
कभी उस राह पर जाता....!
कभी अम्बर में उड़ जाता....!!
ये आवारा सा पंछी है....!
नहीं काबू मे है आता....!!

कहीं रुकता नहीं पल भर....!
नहीं आराम फरमाता....!!
बड़ा शातिर खिलाडी है....!
है पल मे काम कर जाता....!!

कभी सपने पिरोता है....!
कभी कल मे उतर जाता....!!
अभी तो संग बैठा था....!
और अगले पल ही उड़ जाता....!!

खबर लगती नहीं मुझको....!
ये मीलों सैर कर आता....!!
ये मन बेबाक रहता है....!
न इसकी कोई परिभाषा....!!

Tuesday, November 29, 2011

अरमान...!!





















न मुझसे ही कहा उसने....!
न तुझको ही खबर दी कुछ....!!
तेरी खवाहिश भी कम लगती है....!
मेरी हर आरजू भी है कम....!!
के उसका अरमान ही ऐसा है....!
जो वो लब से नहीं कहता....!!
वो एक उम्र से बैठा है....!
यूँ थामे हुए दिल को....!!
के मुलाकात का दिन जैसे....!
मुकरर रखा है पहले से....!!
बस अब इंतज़ार में है वो ....!
के कोई आहट सुनाई दे....!!
वो लिपट जाए फिर सनम से....!
और ये आँखे छलक आयें....!!
एक टक रहें नज़रें....!
वो पलकें भी ना झपकाए....!!
हो यूँ  पूरा ये किस्सा कुछ....!
के कुछ बाकी ना रह जाए....!!
रहे ना जुस्तजू ही कुछ....!
ना कोई अरमान रह जाए....!!
न मुझसे ही...............!
न तुझको ही.............!!

Tuesday, November 8, 2011

चल साथ चलें...!!

















    चल साथ चलें उस छोर तलक जिस छोर के आगे राह न हो....!
सारी ख्वाहिश बेमानी हों मन की कोई बाकी चाह न हो....!!
एक अजब सुकून सा हो दिल को सारा मंज़र मस्ताना हो....!
ये वक़्त का दरिया थम जाए ऐसा भी कुछ अफसाना हो....!!

पिघली-पिघली सी शाम हो कुछ सुलझा सा हो सारा आलम....!
हल्की-हल्की हो सर्द हवा बेहद हल्का हो मेरा मन....!!
मदहोशी हो चाँद-सितारों में सुल्गी-सुल्गी सी हो सांसें....!
पूरी दुनियाँ खामोश रहे बस तेरी मेरी ही हो बातें....!!

न होश ही बाकी बचा रहे न छायी पूरी बेहोशी हो....!
नज़रों में परछाई सी हो तेरी और रूह ये तुझमे डूबी हो....!!
सब कुछ थम जाए जम जाए पल सारे वहीँ ठहर जाएँ....!
बस एक लम्बी सी राह रहे और तू हाथ थाम चलता जाए....!!

चल साथ चलें उस छोर तलक.....................!
सारी ख्वाहिश बेमानी हों............................!!

Sunday, October 9, 2011

मुमकिन है...!!














        बहुत मुमकिन है शायद किसी दिन शाम थम जाए....!
तू मिलने आये मुझसे और पल यूँही ठहर जाए....!!
नज़रें झुकाना ही तेरा जब इज़हार बन जाए....!
पहर बीते न ये और वक़्त की भी नब्ज़ जम जाए....!!

फिर हो शुरू यूँ गुफ्तगू का सिलसिला तुझसे....!
यूँ सारा जहाँ जैसे यहीं आकर सिमट जाए....!!
इन खामोश निगाहों से तू वो बात भी कहदे....!
जिस बात को कहने में सदियाँ सी गुजर जाएँ....!!

बिखर जाए कुछ इस तरह तू मेरी बाहों में आकर के....!
यूँ जिस तरह सागर में सांझ का सूरज पिघल जाए....!!
लिपट कर मेरे ही अक्स से तू कुछ यूँ सिमट जाए....!
के जिस्म मेरा रहे मुझमे और तू रूह बन जाए....!!

बहुत मुमकिन है शायद..........................!
तू मिलने आये मुझसे.............................!!

Monday, September 19, 2011

रंग...!!



बेहिसाब हैं रंग यहाँ, परदे हैं परछाई हैं....!
सागर भी थोड़ा चंचल है, लहरों में भी अंगड़ाई है....!!

कितना ठहरा है ये पानी, कितनी इसमें गहराई है....!
कुछ थमा सा है कुछ भाग रहा, और थोड़ी तन्हाई है....!!

हैं कुछ आवाजें तल्ख़ यहाँ, कुछ में बेहद नरमाई है....!
कुछ नज़रें हैं बेबाकी सी, और कुछ में हया समायी है....!!

है आईना थोड़ा धुंधला सा, धुंधली-धुंधली परछाई है....!
थोड़े से झूठे हैं किस्से, थोड़ी इनमे सच्चाई है....!!

कुछ रंग हैं रूखे-रूखे से, कुछ रंगों पर सुर्खी छाई है....!
ये जैसी भी है तस्वीर बनी, इन रंगों से ही बन पायी है....!!

बेहिसाब हैं रंग यहाँ.............................!
सागर भी थोड़ा चंचल है..........................!!

Monday, August 22, 2011

धुआं...!!


















है धुआं अम्बर में क्यूँ, क्या जल रहा है आंच पे....!
तू रो रहा है सच बता, या गिर गया कुछ आँख में....!!

है इस कदर मायूस क्यूँ, नाराज़ अपने आप से....!
यूँ तो नहीं खामोश था, कुछ बात है इस बात में....!!

क्यूँ बन रहा अंजान तू, खुद अपनी ही पहचान से....!
ग़म है तुझे ऐसा भी क्या, क्यूँ है खफा हर नाम से....!!

रुक तो ज़रा पल के लिए, कुछ गुफ्तगू कर यार से....!
है अभी शुरुवात ये, तू डर गया क्यूँ हार से....!!

चलना अभी तो है बहुत, यूँ थक न हिम्मत हार के....!
हैं ठोकरें ये राह की, कर पार इनको प्यार से....!!

उढ़ परिंदे की तरह, आज़ाद इस आकाश में.....!
मंजिल तो खुद ही आएगी, कर यकीं तू आप पे....!!

है धुआं अम्बर में क्यूँ.....................!
तू रो रहा है सच बता......................!!

Wednesday, July 27, 2011

ओ साकी...!!


चल सुन आज ज़रा ओ साकी मैखाने को चलते हैं....!
हम भी देखें लोग क्यूँ अक्सर बोराए से फिरते हैं....!!

इस पानी के नशे में लोग क्यूँ खुद से ही बतलाते हैं....!
ग़म में अक्सर हसते  हैं और खुशी में नीर बहाते हैं....!!

इस पानी के जादू से हमको भी वाकिफ होना है....!
पी कर हम भी देखेंगे की क्या माटी क्या सोना है....!!

चल अपने-अपने प्यालों में हम भी मै लेकर आते हैं....!
क्या सुरूर है ऐसा इसमें कुछ इसकी खबर लगाते हैं....!!

हाँ जब तक ये बोतल प्यालों में पूरी-पूरी ना आ जाये....!
तू उठ कर ना जाना साकी जब तक जाम ना थम जाएँ.....!!

जब आधा होश रहे तुझको और आधा कहीं चला जाए....!
और मै का सारा सागर ही जब तेरी आँखों में लहराए....!!

निकलेंगे तब मैखाने से जब दो के चार नज़र आएँ....!
और जब तेरी जुबाँ भी तुझसे आधा ही साथ निभा पाए....!!

चल सुन आज ज़रा ओ साकी......................!
हम भी देखें लोग क्यूँ अक्सर......................!!

Monday, July 18, 2011

ज़रा लम्बी कहानी है...!!


















तेरे सवाल-

तू कहता है बात बता क्या हैं तेरे जज़्बात बता....!
हस्ता है तू किस बात पे यूँ क्यूँ रो जाता है राज़ बता....!!
चुप-चाप सा बैठा रहता है इस ख़ामोशी का हाल बता....!
क्या बुनता है तू मन के भीतर इस गहराई का छोर दिखा....!!
अपने ख्वाबों की हलचल का कोई तो मतलब समझा....!
क्यूँ चुप हैं ये तेरी आखें इस चुप्पी का कोई सबब बता....!!

मेरे जवाब -

एक-एक बात बताऊंगा खुद से वाकिफ करवाऊंगा....!
हसने, रोने की वजह तुझे खुद मै ही बतलाऊंगा....!!
बातें थोड़ी उलझी सी हैं फुरसत से इनको सुल्झाऊंगा....!
मै तुझको अपने भीतर बैठे एक शक्श से आज मिलाऊंगा....!!
बस एक गुजारिश है तुमसे थोड़ी फुरसत लेते आना....!
कुछ पल अपने देना मुझको कुछ राज़ मेरे लेते जाना....!!
अल्फाजों से लगेगा यूँ ये बातें जानी पहचानी हैं....!
हाँ कुछ वक़्त लगेगा बातों में ज़रा लम्बी कहानी है....!!

Monday, July 11, 2011

एक पन्ना...!!

 

एक पन्ना लिखा हुआ अपना ही आज अजब सा लगता है....!
बीते लम्हों की बातों पर ये मन मेरा ही हसता है.....!!

कुछ बातें पढ़ते-पढ़ते आँखों से नीर छलकता है....!
और कुछ किस्सों पर मन मेरा ये मुस्काता और मचलता है....!!

कल जो बीत गया है वो एक ख्वाब का हिस्सा लगता है....!
बदल गया है सब कुछ अब ना जाने क्यूँ ऐसा लगता है....!!

ना जाने दिमाग पर कितनी ही यादों की परतें हैं बिछी हुई....!
हर याद का अपना मतलब है हर याद है मुझसे जुडी हुई....!!

बीती यादों का हर लम्हा एक अक्स छोड़ कर जाता है....!
क्या होता था, क्यूँ होता था ये पन्ना याद दिलाता है....!!

एक पन्ना लिखा हुआ अपना ही......................!
बीते लम्हों की बातों पर ये मन मेरा................!!

Sunday, May 15, 2011

बाज़ार...!!


















                बाज़ार लगाऊंगा अपना कुछ खरीदार बुलवाऊंगा....!
एक-एक करके लोगों से मै बोली अपनी लगवाऊंगा....!!

देखें कितना भाव लगेगा कितना कौन लुटायेगा ....!
कौन खरीदेगा मुझको और कौन मुफत ले जायेगा....!!

कोई धन से तौलेगा कोई नज़रों से भाव लगायेगा....!
भांप जाएगा मन मेरा जो दिल भी संग ले जायेगा....!!

कीमत कोई देगा कितनी क्या-क्या अरमान जतायेगा....!
कैसे कोई अपने मन में मेरी जगह बनायेगा....!!

कितनी दूरी तक हाथ थाम कर कौन कहाँ ले जायेगा....!
कौन जिस्म को साथ रखेगा और रूह कौन ले जायेगा....!!

बाज़ार लगाऊंगा अपना...............................!
एक-एक करके लोगों से मै..........................!!

Sunday, May 1, 2011

एक कोने से...!!





















एक कोने से दूर खड़ा मै इस दुनियां को देख रहा....!
किसके मन में है क्या-क्या और कौन है कितना भला-बुरा....!!

कौन है मेरा दोस्त यहाँ किसको है मुझसे प्यार बड़ा....!
क्यों कोई घुट रहा भीतर ही और किसका चेहरा है बुझा हुआ....!!

किसको खुद से है डर लगता क्यों सब कुछ यूँही है घटता....!
ना है अपनी पहचान कोई हर शक्श भटकता है फिरता....!!

ग़म रहता है क्यों इतना क्यों कोई नहीं खुल कर हँसता....!
क्यों झूठी है सारी दुनियां हर कोई है बस अपनी कहता....!!

दिल, दिमाग में सन्नाटा और होठों पर है ख़ामोशी....!
चुप-चाप बैठ कर ये दुनियां क्यों उलझी है खुद में रहती....!!

एक कोने से दूर खड़ा मै....................................!
किसके मन में है क्या-क्या और.........................!!

Sunday, April 17, 2011

कितने लोगों से बात करूँ...!!



कितने लोगों से बात करूँ कितने लोगों से सच बोलूं....!
किसको मैं अपना यार कहूँ और किसको नज़रों से तौलूं....!!
जो हाथ बढ़ा दे तू अपना तो फिर मैं अपना भ्रम तोडूं....!
इस चुप सी खामोश पहेली में मैं कुछ मिट्टी के रंग घोलूं....!!

सपनों को पलकों पे रख कर होले से ये आँखे मूंदुं....!
बिखरी सी अपनी यादों को दोनों हाथों से संग लेलूं....!!
लिखकर रखलूं कुछ बातों को और कल आकर खुद से बोलूं....!
इस खुले आसमां के नीचे मैं चंदा की चादर में सोलूं....!!

अपनी लकड़ी की अलमारी से कुछ फटे-पुराने ख़त खोलूं....!
उनपर लिखे अल्फाजों को दोहराकर मैं फिर से बोलूं....!!
गहराई में उतरूं थोड़ा और हर बात का कुछ मतलब खोजूं....!
फिर बीती यादों में जाऊ और तुझको एक बार मैं फिर सोचूं....!!

कितने लोगों से बात करूँ...........................!
किसको मैं अपना यार कहूँ और..................!!

Tuesday, April 5, 2011

लिखते-लिखते...!!














तस्वीर बनाऊंगा तेरी रंग इधर-उधर बह जायेंगे....!
लिखते-लिखते तुझको साकी ये कलम मेरी थक जाएगी....!!
कैसे बांधूंगा शब्दों में रंगों में कैसे ढालूंगा....!
मै अपने मन की मूरत की कैसे शक्ल सवारुंगा....!!

ना बातों में तू पूरा होगा चर्चा भी कम पड़ जायेगा....!
तेरे सागर में डूबा जो वो पार कहाँ से पायेगा....!!
तुझसे मिलकर आने वाला खुद अपने में खो जायेगा....!
और तेरी सारी बातों का कोई कैसे छोर बताएगा....!!

जो भी होगा बेमतलब सा उसका मतलब मिल जायेगा....!
तू लोगों के जहन में कुछ सपने जैसा बस जायेगा....!!
ये वक़्त रुकेगा कुछ पल को और फिर आगे बढ़ जायेगा....!
तू आएगा लफ्जों में और एक किस्सा बन जायेगा....!!

तस्वीर बनाऊंगा तेरी रंग.......................!
लिखते-लिखते तुझको साकी ये...............!!

Wednesday, March 16, 2011

एक कटी पतंग है...!!

















                                                                                           


जिंदगी है क्या यहाँ एक कटी पतंग है....!
डोर जिसमे है मगर हाथ से वो दूर है....!!
भूख है जिसमे छिपी प्यास से लाचार है....!
सांस तो बाकी है पर जीने का ना सामान है....!!
बचपन यहाँ है रो रहा, हर दवा नाकाम है....!
सोच में डूबी जवानी आखों में फिर भी आस है....!!
है उदासी हर तरफ लोगों में अब भी खौफ है....!
कैसे जियें किसको कहें हर तरफ बस शोर है....!!
अनजान रहते हैं सभी पहचान से डरतें है अब....!
चुप बैठ कर हैं देखते, होता है कैसे और कब....!!
मुह मोड़ कर बैठा है दिन रातों में घुप्प अँधेरा है....!
उगता है सूरज इस तरह यूँ उस पर भी कोई पहरा है....!!
जिंदगी है क्या यहाँ............................!
डोर जिसमे है मगर...........................!!

Friday, March 11, 2011

एक अरसे बाद...!!















एक अरसे बाद मिला तुझसे तो पता लगा तू कैसा है....!
काफी कुछ बदला-बदला सा था और लगा तू पहले जैसा है....!!

अरमान तेरे वैसे ही हैं अब भी तू छुप कर रोता है....!
अब अक्सर बातें करते-करते तू नम आखों संग होता है....!!

अब भी अपने अश्कों को तू पलकों की आड़ से धोता है....!
चलता है क्या तेरे भीतर तू चुप-धीरे से टोहता है....!!

लोग कहा करतें हैं की तू गुम-सुम सा रहता है....!
करता है कम बातें सबसे ख़ामोशी में जीता है....!!

अंदाज बयां करता है की तू हमसे अब कतराता है....!
ग़म अपने बतलाने में भी न जाने क्यूँ घबराता है....!!

राहों में चलते अक्सर तू निगाह बचा कर जाता है....!
क्यूँ तुझसे जुड़ने वाला धागा अब नाजुक होता जाता है....!!

एक अरसे बाद मिला तुझसे..............................!
काफी कुछ बदला-बदला सा था........................!!

Thursday, March 10, 2011

धीमे-धीमे चलते-चलते...!!





















धीमे-धीमे चलते-चलते कब राह ख़त्म कुछ पता नहीं....!
शायद तू बेहोशी में है कुछ होश तुझे अब रहा नहीं....!!

तेरी आँखों का ये काजल अश्कों संग अधरों तक बह आया....!
सिसकी भर के रोते-रोते दम भी तेरा है भर आया....!!

होठों के बीच पड़ा आंसू नमकीन जुबां से टकराया....!
आखों के डोरे लाल हुए पलकों पर पानी छाया....!!

जी करता है तुझको बस रोते सिसकी भरते देखूं....!
जब तू रो कर थक जाये तब तुझसे ग़म की बातें पूछूँ....!!

सारी बातों को घुमा दूँ कुछ मतलब उल्टा-पुल्टा करदूं....!
तू रोते में हस जाये मै कुछ ऐसा किस्सा कर दूँ....!!

चेहरे पर तेरे हसी रहे खुशियों की कलियाँ खिल जाएँ....!
कितना सुकून सा मिलता है जब तू यूँ खिलकर मुस्काए....!!

धीमे-धीमे चलते-चलते............................!
शायद तू बेहोशी में है.......................... ....!!

Sunday, February 20, 2011

बात कुछ ऐसी है के...!!


















बात कुछ ऐसी है के, दुनिया बहुत नाराज है....!
एक कोने में है चुप-चाप सी, कहती नहीं कुछ ख़ास है....!!
हस्ते में रोती है ये, ग़म इसका बहुत नासाज़ है....!
रूठ कर बैठी है चुप, कोई न आता पास है....!!

है शिकायत इसको कुछ, और है सवालों की झड़ी....!
खामोश है अक्सर बहुत, मायूस रहती है खड़ी....!!
है कहाँ अपनी सहर, बस ताकती है वो घड़ी....!
रात ये ढल जाएगी, उम्मीद है इसको बड़ी....!!

भीड़ से सहमी है ये, तन्हाई में जाके रोती है....!
मिलता नहीं है इसको कुछ, हर रोज़ सपने खोति है  ....!!
हैं इसके लिए सब अजनबी, खुद को नहीं ये जानती....!
आकर कहे कोई सच भी जो, है नहीं ये मानती....!!

बात कुछ ऐसी है के.................................!
एक कोने में है चुप -चाप सी.......................!!

Wednesday, January 19, 2011

पर्दा...!!

























है ये तेरा भी हिस्सा और है मुझसे भी जुड़ा हुआ....!
तुझमे भी थोड़ा शामिल है और जरा है मुझमे घुला हुआ....!!

कभी छुपाता तेरा चेहरा और मेरे मन की गहराई भी....!
तेरे अपने राज़ भी कुछ और मेरी थोड़ी परछाई भी....!!

जो भी खाली है बचा हुआ ये उसका मतलब समझाता है....!
और ये पर्दा ही मुझको मेरे चेहरे से मिलवाता है....!!

इसकी आड़ के पीछे से मन सब बातें कह जाता है....!
और मेरी नज़रों को कभी-कभी ये सारे सच दिखलाता है....!!

ये पर्दा मेरी खातिर लोगों से आँख मिलाता है....!
रखता है दुनियाँ को धोखे में और मेरा साथ निभाता है....!!

झूठे रंगों से ये पर्दा पहचान मेरी करवाता है....!!
और तंग रास्तों से मुझको बेख़ौफ़ छुपा ले जाता है....!

है ये तेरा भी हिस्सा और है............................!
तुझमे भी थोड़ा शामिल है और........................!!

Friday, January 14, 2011

आईना...!!

























मै आज जरा बाहर निकला बाजार लगा था रस्ते में....!
कुछ खास नहीं मुझको भाया एक आईना लाया सस्ते में....!!
कागज के बंद लिफाफे से मैंने उसको बाहर रक्खा....!
घर का एक अच्छा कोना ढूंढा और वहां उसे लाकर रक्खा....!!
आईना कोने में रख कर फिर शाम का बिस्तर लगा दिया....!
बत्ति को मैंने बंद किया और आँखों को अपनी मूँद लिया....!!
सुबह सवेरे आँख खुली ठंडे पानी से मुह धोया....!
मै आईने के पास गया और उसमे अपना चेहरा देखा....!!
देखा मैंने कुछ गौर से जो मुझको कुछ अलग नज़र आया....!
कुछ तो बदला-बदला सा था या मुझको केवल भ्रम सा था....!!
चेहरे का रंग उड़ा सा था और आँखों के नीचे झाइयाँ थी....!
माथे पर धुंधली सलवटें सी थीं और गाल थे बेहद फटे हुए....!!
जी रहा था मै पुतले जैसा उस दिन कुछ ऐसा लगा मुझे....!
सब कुछ था लुटा हुआ जैसे और भीतर से सब खाली सा था....!!
पहचान मुझे मालूम न थि और हूँ क्या मै था नहीं पता....!
आईने से कुछ मदद मिली पता लगा पहचान का कुछ....!!
अगर न मै बाहर जाता और आईना न लेकर आता....!
खबर मुझे कैसे लगती और कौन मुझे सच बतलाता....!!
मै आज जरा बाहर निकला.............................!
कुछ खास नहीं मुझको भाया...........................!!

Sunday, January 2, 2011

आ बैठ जरा...!!
















                आ बैठ जरा मेरे संग भी, मेरी उलझन को भी सुलझा....!
क्यूँ होता है ये मेरे संग ही, तू मुझको इसका हल बतला....!!

चुप रहता है मन मेरा, मै नहीं किसी से कुछ कहता....!
मेरी अपनी ख़ामोशी का, तू मुझको कुछ मतलब समझा....!!

सारी बातों को ध्यान से सुन, और इनकी गहराई तक जा....!
समझ जरा मुझको थोड़ा, और क्या है मुझको मर्ज़ बता....!!

मेरे माथे की सलवटों को पढ़, कुछ दूर तलक मेरे संग आ....!
कुछ सुन मेरी कुछ सुना मुझे, मुझको कोई प्यारा ख्वाब दिखा....!!

सारी आदतों से वाकिफ है तू, है कहाँ कमी मुझको बतला....!
हिस्सा हूँ या किस्सा हूँ मै, तू मुझे मेरा होना समझा....!!

आ बैठ जरा मेरे संग भी.......................................!
क्यूँ होता है ये मेरे संग ही....................................!!