Monday, August 12, 2013

बुनियाद...!!















                          मेरे घर का ही एक हिस्सा, जो मैंने भी नहीं देखा....!
हाँ वो बुनियाद है जिसको, किसी ने भी नहीं देखा....!!

न जाने राज़ हैं, कितने छुपे, इसके लिफाफों में....!
न जाने बंद हैं, कितने ही किस्से, इसकी आँखों में....!!

ये मुझको जानती भी है, मुझे पहचानती भी है....!
मेरी हर एक आदत को, ये खुद में ढालती भी है....!!

मेरे हर ग़म से वाकिफ है, हसी भी याद है इसको....!
मेरी हर जिद्द के पीछे की, वजह को मानती भी है....!!

यहीं बीता है बचपन भी, जवानी की खुमारी भी....!
मेरे मासूम से सपनों की, पूरी जिंदगानी भी....!!

हाँ इस बुनियाद को मैंने, कभी अधूरा नहीं पाया....!
जब भी पाया है, अपने आप को,  इसमें घुला पाया....!!

मेरे घर का ही एक हिस्सा....................!
हाँ वो बुनियाद है जिसको....................!!

Sunday, August 4, 2013

तू और तेरी बातें...!!





















चेहरे से कुछ ज़ाहिर ना करे, फिर भी कुछ छुपा नहीं पाती....!
और छोटी-छोटी बातों पर, आँखे तेरी हैं भर आती....!!

बचपन तुझमे है छुपा कहीं, और कभी अजब है इतराती....!
कभी-कभी कुछ लफ्जों को, है अलग ढंग से दोहराती....!!

अक्सर कुछ बातें पूरी करने से, पहले ही है, तू रूक जाती....!
कोई पूछे तो, नहीं है कुछ, कह कर है आगे बढ़ जाती....!!

कोई ग़म हो जब तुझमे छुपा हुआ, आवाज तेरी है भर आती....!
कोशिश करती है बहोत मगर, आँखों से बूंदे हैं गिर जाती....!!

कुछ मन की बातें कहने को, जब तुझको कोई नहीं मिलता....!
तू चुप रहती है हद से ज्यादा, और मन ही मन है घुट जाती....!!

तू लम्हों के संग जीती है, हसती है और है मुरझाती....!
तू खुली हवा है नीले अम्बर में, हर जगह रंग है भर जाती....!!

तू इठलाती नदी है बहती, जहाँ चाहती मुड़ जाती....!
तू जीती है ऐसे जैसे, पतंग डोर संग उड़ जाती....!!

तेरे चेहरे पर लिखा है जो, तू खुद समझ नहीं पाती....!
और अपनों की ही कुछ बातों पर, खुद से नाराज़ है हो जाती....!!

रूठी रहती है कुछ पल तक, और हसी कहीं है खो जाती....!
तुझको मनाये, जब हस कर कोई, तू भी है धीमे से हस जाती....!!

कुछ राज़ छुपा कर तू रखती है, नहीं किसी को बतलाती....!
खुद में इतनी उलझी है 
तू, सुलझ नहीं मुझसे पाती....!!

तू करती है इतनी सारी बातें, जो ख़त्म नहीं हैं हो पाती....!
कहने को तुझपे कितना कुछ है, दुनिया भी समझ नहीं पाती....!!

तू हसती है जब अश्कों के संग, कुछ अलग नज़र ही है आती....!
कहती है दुनियां को भला-बुरा, और फिर खामोश है हो जाती....!!

चंचल है तेरा मन इतना, तू बिन पंखों के उड़ जाती....!
और भोलापन इतना है तुझमे, मतलब को समझ नहीं पाती....!!

जिद करती है ऐसे जैसे, कोई चीज़ है प्यारी खो जाती....!
और कुछ बातों को सुन कर भी, तू अंसूना है कर जाती....!!

चेहरे से कुछ ज़ाहिर ना करे...........................!
और छोटी-छोटी बातों पर.............................!!
 

Monday, July 8, 2013

फिर मिलेंगे...!!















कभी जब अलविदा कहता हूँ, तो एक उम्मीद रहती है....!
फिर मिलेंगे, हम किसी मोड़ पर, यही एक चीज़ रहती है....!!
जब भी मिलना हो दोबारा, किसी भी यार से मेरा....!
हो फिर उतना ही ताज़ा दिन, हो फिर वैसा ही सवेरा...!!
पेश आयें हम इस तरह, जैसे कल ही तो मिले थे....!
भूल जाएँ सारे शिकवे, बाकि जितने भी गिले थे....!!
हर एक मुस्कान हो सच्ची, कोई आंसू न हो फीका....!
हाँ अब जब भी मिले हम-तुम, हो एक अहसास मीठा सा....!!
ठहाके हों वही अब भी, मौजूद अपनी बातों में....!
और लिखे हो अब भी कुछ, उधार सबके खातों में....!!
कभी जब अलविदा कहता हूँ............................!
फिर मिलेंगे, हम किसी मोड़ पर........................!!

Sunday, April 28, 2013

कैसे...!!















तेरी मायूसी को देख कर कुछ सवाल तो उठेंगे....!
हाँ ये लोग तुझसे मेरा हाल भी पूछेंगे....!!
मै तेरे पास नहीं हूँ तू बताएगा कैसे....!
अपने चेहरे का बदलता रंग छुपायेगा कैसे....!!
तेरी आँखों की नमी सारे हालात बयां कर देगी....!
इन आँखों को भी खामोश तू रख पायेगा कैसे....!!
बेवजह तंज कसेंगे तुझ पर ये दुनियाँ वाले....!
बेवजह हर कोई तुझपे महरबां होगा....!!
तू लोगों के सवालों से ना शिकवा करना....!
कोई पूछे मेरे हालात तो अनसुना करना....!!
कितना ग़म है तेरे भीतर तू बताना ही नहीं....!
अपने हालात से वाकिफ किसी को कराना ही नहीं....!!
कुछ वक़्त लगेगा तेरी उलझन ज़रूर कम होगी....!
हाँ इस रात की मंजिल एक नई सुबह होगी....!!
तेरी मायूसी को देख कर.....................!
हाँ ये लोग तुझसे मेरा.......................!!

Monday, January 7, 2013

नहीं मिलता...!!

























इस शहर में कहीं अब कोई  इंसान नहीं मिलता....!
चलते फिरते पुतलों का कोई इमान नहीं मिलता....!!
ये जिस्म सांस तो लेते हैं बहोत जोर-जोर से....!
पर इन मुफ्त की साँसों का कोई दाम नहीं मिलता....!!
कफ़न ओढ़ कर चलती हैं यहाँ जिन्दा लाशें....!
इनकी इस कद्र लाचारी का कोई नाम नहीं मिलता....!!
चुप चाप निकल जाते हैं ये आँखें मूँद कर अपनी....!
और इस बेशर्म हया का इन्हें कोई ईनाम नहीं मिलता....!!
ये बात-चीत तो करतें हैं घरों में बैठ कर अपने....!
पर यहाँ सिर्फ बातों से ही तो इन्साफ नहीं मिलता....!!
इस शहर में कहीं अब..............................!
चलते फिरते पुतलों का..........................!!