Friday, December 24, 2010

बीत गया...!!















                        बीत गया ये दिन भी यूहीं ये रात भी यूहीं जाएगी....!
बस तेरे मेरे बीच की कुछ प्यारी बातें रह जाएँगी....!!

कल फिर सूरज निकलेगा कल फिर अमराई छाएगी....!
कल ख़ुशी मेरे दरवाजे पर दस्तक देने फिर आएगी....!!

नींद से भारी मेरी पलकें फिर गहरी नींद में जाएँगी....!
फिर अक्सर खाली बैठे-बैठे यादें खुद को दोहराएंगी....!!

कुछ दीवारों के पीछे से फिर कुछ आवाजें आएँगी....!
कभी नमी होगी आखों में और कभी हसी भी आएगी....!!

कुछ बीती बातें मुझको मेरी पहचान बतायेंगी....!
कहीं कमी तो है बाकी कुछ ऐसा मुझे जताएंगी....!!

बीत गया ये दिन भी यूहीं......................................!
बस तेरे मेरे बीच की कुछ ......................................!!

Monday, December 13, 2010

चर्चा तेरा...!!






















तू महफ़िल से हो बाहर, या मौजूद रहे महफ़िल में तू....!
चर्चा तेरा ही होता है, होता है सबकी जुबां पे तू....!!
तुझको कोई रात का चाँद कहे, कोई कहता सावन की घटा है तू....!
खो देता है होश कोई, और बेहोशी में भी रहता है तू....!!

कोई छुप कर देख रहा तुझको , और पलकों को न झपकाता है....!
कोशिश करता है हसने की, और धीमे से मुस्काता है....!!
बहका-बहका सा चलता है, हर कदम पे वो गिर जाता है....!
बारिश में तेरी राह तके, और भीग के तर हो जाता है....!!

तू हस कर बात करे जिससे, वो पगला सा हो जाता है....!
अपना ना होश रहे उसको, और खुद से ही बतियाता है....!!
आईने में देखे खुद को, और इठलाता, इतराता है....!
खुश रहता है दिन भर वो, फिर महफ़िल नई सजाता है....!!

तू महफ़िल से हो बाहर......................................!
चर्चा तेरा ही होता है.........................................!!

Friday, December 10, 2010

जैसा पहले होता था...!!

जैसा पहले होता था अब वैसा कहीं नहीं होता....!
तेरे और मेरे जाने का अब रस्ता एक नहीं होता....!!

मै गिर जाता हूँ जब चलते-चलते कोई अपना हाथ नहीं देता....!
अब बंद किताबों के भीतर कोई किस्सा खास नहीं मिलता....!!

बंद घरों में रहने की लोगों को आदत अब अच्छी लगती है....!
उगते सूरज को देख भी लें इसकी फुरसत कम मिलती है....!!

अब अपनी ही बातों में ये मशरूफ जमाना रहता है....!
खुद से भी बात नहीं करता मेरे संग भी चुप रहता है....!!

कुछ लोग बहाने देते हैं और वजह मुझे बतलाते हैं....!
के वो मेरे रस्ते से निकले भी और मिलने से क्यों कतराते हैं....!!

जैसा पहले होता था अब......................................!
तेरे और मेरे जाने का अब रस्ता.................................!!

Sunday, December 5, 2010

तू जो आकर देखेगा...!!

तू जो आकर देखेगा तो अब सब कुछ सिमटा पायेगा....!
अब तो मेरा अपना घर भी एक ताले से लिपटा पायेगा....!!

उसकी सारी दीवारों पर मकड़ी के जाले होंगे....!
और रखी हुई तस्वीरों पर भी धूल ने परदे डाले होंगे....!!

जब तू मुड कर देखेगा तो तेरे पैर छपे होंगे....!
और मेरे कुछ बर्तन भी अब तो शायद जंग लगे होंगे....!!

कहीं किसी कोने में अब भी मेरी याद रखी होंगी....!
और सालों से बंद पड़ी खिड़की अब मुश्किल से खुलती होंगी....!!

घर के सारे नलके भी अब तो बिलकुल जाम पड़े होंगे....!
और ख़त लिखे हुए मेरे यूही गुमनाम पड़े होंगे....!!

मेरे घर के गलियारे में ख़ामोशी का सन्नाटा होगा....!
और अब मुझसे मिलने भी तो कोई नहीं आता होगा....!!

तू जो आकर देखेगा तो अब..................................!
अब तो मेरा अपना घर भी ..................................!!

Tuesday, November 30, 2010

ख्वाहिशें ...!!

ख्वाहिश है परों को पाने की, पंछी बन के उड़ जाने की....!
इस हवा से दौड़ लगाने की, सूरज से जल्दी आने की....!!
दुनिया को गोल घुमाने की, एक हाथ से चाँद छुपाने की....!
मिट्ठी से महल बनाने की, पानी पर नाव चलाने की....!!

ख्वाहिश है अम्बर पे छाने की, गर्मी में बर्फ गिराने की....!
फूलों से महक चुराने की, और संग कोयल के गाने की....!!
परछाई को गले लगाने की, पहली बारिश में नहाने की....!
खुद को आवाज लगाने की, और लम्बी सैर पे जाने की....!!

ख्वाहिश है मंजिल को पाने की, उम्मीद को और बढ़ाने की....!
तुझसे फिर एक बहाने की, और एक अरमान सजाने की....!!
अपनी तस्वीर बनाने की, कल को फिर से दोहराने की....!
कुछ गहरे राज़ छुपाने की, सागर पर चलकर जाने की....!!

ख्वाहिश है परों को पाने की.................................!
इस हवा से दौड़ लगाने की..................................!!

Saturday, November 27, 2010

माँ...!!

माँ तूने बेहद आसानी से जीना मुझको है सिखलाया ....!
तेरे हाथों की ठंडक ने गर्मी में मुझको सहलाया....!!
माँ तूने मेरे उलझे बालों को अपने हाथों से सुलझाया....!
और अपनी नर्म हथेली से तूने मुझको है थपकाया ....!!

माँ तेरी गोद के जैसा मैंने स्वर्ग नहीं कहीं पाया....!
डर मुझको जो लगा कभी तूने मुझको है समझाया....!!
माँ तेरी हलकी सी डांट में भी मुझको तो प्यार नज़र आया....!
और तूने मेरा मन पढ़कर हर मुश्किल का हल पाया....!!

माँ तूने ही सारे रंगों से वाकिफ मुझको है करवाया....!
क्या सच है, है क्या झूठा तूने ही मुझको बतलाया....!!
तेरे आँचल के साए में ही मै बस चैन से सो पाया....!
और लिपट के तुझसे रोने में मैंने एक अजब सुकू पाया....!!

माँ तूने बेहद आसानी से जीना .................................!
तेरे हाथों की ठंडक ने गर्मी में..................................!!

Tuesday, November 23, 2010

एक दिन...!!

जब एक दिन चुपके से सूरज मेरी खिड़की पर आएगा ....!
और पिघल के अपनी ही गर्मी से वो काजल बन जायेगा....!!
जब एक दिन बादल की परछाई से चाँद निकल कर आएगा....!
और खुद की सर्द हवा से ही वो बर्फीला हो जायेगा....!!

जब मेरी कागज की कश्ती को दरिया साहिल तक लायेगा....!
और एक दिन जब खुद मुझसे मिलने वो मेरे घर आएगा....!!
जब हलकी सी सर्दी से ही कोहरा काफी छा जायेगा....!
और जब सूरज अपनी धूप का मुझसे इंतज़ार करवाएगा....!!

जब सब लोग सुनेंगे मुझको पर वो अन्सूना कर जायेगा....!
और वक़्त हरे ज़ख्मों को भी जब आसानी से भर जायेगा....!!
जब पूरे दिन का आधा हिस्सा बस बातों में जायेगा....!
और जब खुद का लिखा हुआ मुझको ज्यादा ही भायेगा....!!

तब मुझको इस दुनिया का कुछ अंदाज़ा सा लग जायेगा....!
और शायद तब खुदसे मिलने का मज़ा अलग ही आएगा....!!
तब मेरे सारे अल्फाजों को एक जरिया मिल जायेगा....!
और मेरी कुछ उम्मीदों को भी अपना घर मिल जायेगा....!!

जब एक दिन चुपके से सूरज................................!
और पिघल के अपनी ही गर्मी से...........................!!

Tuesday, November 16, 2010

क्यूँ...!!

क्यूँ  मुझको अक्सर लोगों की छोटी बातें हैं चुभ जाती....!
क्यूँ  मुझको मेरे ही भीतर की सूरत नज़र नहीं आती....!!

मै जो तस्वीर बनाता हूँ वो धुंधली क्यूँ  है हो जाती....!
क्यूँ अब पर्दों के हिलने पर भी एक सिहरन सी है उठ जाती....!!

क्यूँ  बीते लम्हों की कुछ यादें आवाजों से हैं टकराती....!
और क्यूँ  कुछ कहने वाली बातें अपनों से भी कही नहीं जाती....!!

क्यूँ मुझे किसी के चेहरे पर कोई उम्मीद नज़र नहीं है आती....!
और पल भर को भी क्यूँ ये दुनिया मतलब को भुला नहीं पाती....!!

क्यूँ मेरी ही खुद की ख़ामोशी इतना कुछ है कह जाती....!
और क्यूँ सब कुछ कह देने पर भी कहीं कमी है रह जाती....!!

क्यूँ  मुझको अक्सर लोगों की..................................!
क्यूँ  मुझको मेरे ही भीतर की.................................!!

Monday, November 15, 2010

My Lines For Me...!!

जब तुझ पर उम्मीदों का बोझ बहोत हो....!
और जब ग़म तेरी आँखों से छलके....!!
जब तू इस दुनिया के बीच अकेला हो....!
और बोझल हों नींद से तेरी पलकें....!!
तब मेरे अल्फाजों से तू बातें करना....!
और मेरे आँचल में चैन से सो जाना....!!

जब तुझको रंगों से प्यार ना हों....!
और खुद की बातें ही झूठ लगें....!!
जब मन तेरा खाली खाली सा हों....!
और जब तुझको अपने ही दूर लगें....!!
तब तू मुझमे ही घुल मिल जाना....!
और संग मेरे लफ्जों के सिल जाना....!!

जब तेरी आवाज में एक ख़ामोशी हों....!
और दुनिया की भीड़ ना भाती हो....!!
जब परछाई भी तुझसे अलग चले....!
और राहें सारी मुड़ जाती हों....!!
तब लिपट के मुझसे रो जाना....!
और जो भी ग़म हो बतलाना....!!

जब तुझ पर उम्मीदों का....................!
और जब ग़म तेरी आखों ....................!!

Saturday, November 13, 2010

उस दिन...!!

उस दिन जब तू मेरे संग बैठा था, तेरे चेहरे पर हल्का पहरा था....!
तू बातें कम करता था मुझसे, और सवाल ज्यादा करता था....!!

नाराज था तू मेरी बातों से, और खुद से शिकवे भी करता था....!
तू कुछ समझाना चाहता था मुझको, और खुद एक उलझन में उलझा था....!!

तुझसे मै गर सच कहता भी तो, तू उस पर भी शक करता था....!
मै तुझको कुछ समझाता भी तो, तू कसमें खाने को कहता था....!!

पल भर को तू अंजाना लगता था, और तुझसे गहरा नाता भी लगता था....!
और तेरी सारी बातें सुनकर, मुझको भी थोडा ग़म लगता था....!!

तुझसे सब कुछ न कह कर, बस कुछ ही कहना बेहतर लगता था....!
क्यों अपनी आवाज के सहमेपन से ही, तुझको इतना डर लगता था....!!

उस दिन जब तू मेरे संग बैठा था........................................!
तू बातें कम करता था मुझसे और ......................................!!

Tuesday, November 9, 2010

बाकी है...!!

कुछ लोगों से अभी मेरी पहचान का होना बाकी है....!
जो उड़ान भरनी है मुझको उस उड़ान का होना बाकी है....!!
बाकी है इस दुनिया की झूठी दीवारों से बाहर आना....!
और अभी मेरे भीतर बैठे अरमान का जगना बाकी है....!!

बरसों से खामोश रहे एक इंसान का उठना बाकी है....!
मन के पर्दों पर जमी हुई इस धूल का छटना बाकी है....!!
बाकी है प्यारे रंगों का कुछ खाली तस्वीरों में भरना....!
और अभी मेरे शहर का मुझसे दो बातें करना बाकी है....!!

कुछ प्यारी सी यादों को फिरसे दोहराना बाकी है....!
अभी मेरी आधी बातों का पूरा होना बाकी है....!!
बाकी है हर ख्वाहिश का खुल करके साँसे लेना....!
और अभी मेरा तुझसे मिलकर कुछ शिकवे करना बाकी है....!!

कुछ लोगों से अभी मेरी पहचान ...............................!
और अभी मेरा तुझसे मिलकर.................................!!

Sunday, October 31, 2010

मै...!!

मै खुद को थोड़ा सा लिखूं  भी और लिखकर थोड़ा सा मिटा भी दूँ....!
कभी मै तेरे संग हस दूँ और कभी हसी को छुपा भी लूँ....!!

मै अक्सर उलझी बातें कह दूँ और फिर मतलब समझा भी दूँ....!
कभी मै पिछला याद करूँ और कभी आज को भुला भी दूँ....!!

मै पहली बारिश में भीगूँ भी और खुद को सूरज में सुखा भी लूँ....!
कभी मै सबसे खफा रहूँ और रूठों को पल में मना भी लूँ....!!

मै वक़्त को लफ़्ज़ों में ढालूं भी और लम्हों को रंगों से सजा भी दूँ....!
मै कभी हवा के साथ बहूँ और धरती को अम्बर से मिला भी दूँ....!!

मै दुनियां से बच कर भागूं भी और इसके लोगों से जुड़ा भी हूँ....!
कभी राह सीधी हो मेरी और मै हर मोड़ पे मुड़ा भी हूँ....!!

मै खुद को थोड़ा सा लिखूं भी और लिखकर ......................!
कभी मै तेरे संग हस दूँ और.......................................!!

Thursday, October 28, 2010

शहर...!!

शहर मेरा अब भी वैसा है जैसा मैंने सोचा था....!
सादापन अब भी कायम है उसमे थोडा-थोडा सा....!!

कुछ लोगों के चेहरे तो अब भी जाने पहचाने हैं....!
और ना मिलने के लोगों पर अब कुछ नए बहाने हैं....!!

चौराहे से सारी राहें अब भी घर को आ जाती हैं....!
और एक नदी शहर से मेरे अब भी हो कर जाती है....!!

शहर मेरा अब भी अक्सर सर्दी में जल्दी सो जाता है....!
और गर्मी के मौसम में वो भोर के संग उठ जाता है....!!

अब भी बारिश की बोछारों से ये हवा नर्म हो जाती है....!
और अब भी गीली मिट्टी से वो सौंधी सी खुशबू आती है....!!

बाज़ारों में अब भी लोगों का वैसा ही आना जाना है....!
और जिन बातों से जुड़ा हूँ मै ये शहर वो ताना-बाना है....!!

शहर मेरा अब भी वैसा है.................................!
सादापन अब भी कायम है................................!!

Sunday, October 24, 2010

ऐसा दिन आएगा ...!!

कभी तो ऐसा दिन आएगा मै जो चाहूँगा हो जायेगा....!
बादल जब इस धरती को छूकर फिर अम्बर में उड़ जायेगा....!!

मै जब अपने हाथों में सागर भर पर्वत पर छा जाऊंगा....!
और फिर आवारा झरना बनकर मै नदिया में मिल जाऊंगा....!!

मै जब झील किनारे बैठूंगा और उसके ही पानी पर सो जाऊंगा....!
और फिर कुछ पन्ने लिखते- लिखते मै इन आँखों से रो जाऊँगा....!!

मै जब इस दुनिया के पागलपन से बेहद दूर चला जाऊंगा....!
और खुद को पाने की चाहत में तनहा राहों पर आ जाऊंगा....!!

जब किसी शाम चंदा, सूरज को मै अपने संग ले आऊंगा....!
और उनसे बातें करते-करते दिन और रात में खो जाऊंगा....!!

कभी तो ऐसा दिन आएगा...........................................!
बादल जब इस धरती को छूकर....................................!!

Saturday, October 23, 2010

परछाई...!!

साथ रहा जो मेरे हर पल वो बस मेरी परछाई थी....!
राहें चाहे जैसी भी थी एक वो ही मेरे संग आई थी....!!

जब-जब भी मै उलझन में था उसने ही राह दिखाई थी....!
और मेरी छोटी सी ख़ुशी में भी वो खुल के मुस्काई थी....!!

थी थोड़ी धुंधली सी वो और सागर जैसी गहराई थी....!
उसमे बेहद सादापन था और चंदा जैसी नरमाई थी....!!

कुछ बातें हम दोनों ने संग-संग मिलकर सुलझाई थी....!
और आवाजों के शोर से वो अक्सर सहमी, घबराई थी....!!

हर मौसम में पास रही वो सर्दी थी या पुरवाई थी....!
जो बातें मैंने आधी छोड़ी उसने पूरी दोहराई थी....!!

साथ रहा जो मेरे हर पल..............................!
राहें चाहे जैसी भी थी...................................!!

Wednesday, October 20, 2010

आज और कल...!!

इस आज का मेरे कल से एक गहरा सा नाता है....!
खुद मैंने अपने आज को ही कल की डोरी से बाँधा है....!!


कल जो चीज़ अधूरी थी आज वही परिभाषा है....!
केवल कल के न होने से इस आज का मतलब आधा है....!!

आज की भोर के पीछे भी कल की ही रात का खाका है....!
जो आज से मुझको बांधे है कल वो एक पक्का धागा है....!!

कल जो रस्ता देखा था वो आज की मंजिल तक जाता है....!
और आज जो रुक कर सोचूं  तो वो कल भी मुझको भाता है....!!

कल अपनी सारी यादों से आज भी मुझे हसाता है....!
और आज भी मेरी रातों में कल सपना बनकर आता है....!!

इस आज का मेरे कल से.........................................!
खुद मैंने अपने आज को ही.....................................!!

Monday, October 18, 2010

अलविदा....!!

औरों के जैसी सारी बातों से अलविदा....!
अब तक की सारी यादों से अलविदा....!!

तुझसे अलविदा और खुद से अलविदा....!
दुनिया की तिरछी राहों से अलविदा....!!

झूठी हसी और झूठे इरादों से अलविदा....!
हर मोड़ पर मिलने वाले छलावों से अलविदा....!!

सच को समझाने वाली किताबों से अलविदा....!
बीत चुके सारे सवालों से अलविदा....!!

झूठे -सच्चे सारे खयालों से अलविदा....!
इस घर की कमजोर दीवारों से अलविदा....!

मुरझाई हुई सारी बहारों से अलविदा....!
उलझन से अलविदा और सुलझन से अलविदा....!!

अपनी खुद की ही उतरन से अलविदा....!
मन के भीतर की इस जकड़न से अलविदा....!

नाम से अलविदा और इस पहचान से अलविदा....!
घुट-घुट कर जीने वाले इस इंसान से अलविदा....!!

औरों के जैसी सारी..................................!
अब तक की सारी..................................!!

Wednesday, October 13, 2010

हम-तुम...!!

जब सागर की गीली रेत पर तलवों की धीमी आहट हो....!
और सूरज को जल्दी से जल्दी पानी में घुलने की चाहत हो....!!
जब आवारा लहरें मेरे पैरों को छु कर वापस जाएँ....!
और दूर देश से उड़कर जब पंछी घर को वापस आयें....!!
तब हम-तुम बैठें मिलकर और कुछ बीती यादें हो....!
कुछ पन्ने पलटें कल के और आज की प्यारी बातें हो....!!


जब पूरब से बह कर आने वाली हवा बहुत मतवाली हो....!
और शाम के रंग में डूबी धरती जैसे एक चाय की प्याली हो....!!
जब सावन की गहरी बदली घिर-घिर अम्बर पर छा जाए....!
और तीखी हल्की बोछारें बलखाती धरती पर आ जाए....!!
तब हम-तुम बैठें मिलकर और................................!
कुछ पन्ने पलटें कल के और....................................!!

जब धूप-छांव के खेल के संग सूरज का आना जाना हो....!
और इन्द्रधनुष के रंगों का खिल कर नभ पर छा जाना हो....!!
जब हर पंछी मतवाला होकर मल्हार का राग सुनाये....!
और तारे रात के अम्बर पर होले-होले से छायें....!!
तब हम-तुम बैठें मिलकर और.............................!
कुछ पन्ने पलटें कल के और.................................!!

Saturday, October 9, 2010

दोस्त...!!

कुछ लोग मुझे मेरे जीवन के एक हिस्से में टकराए....!
कुछ छूट गए पीछे ही और कुछ मेरे संग आये....!!
कुछ पल तक हम अंजान रहे और अब हैं एक दूजे के साए....!
मिलकर हमने संग-संग ही में पल अच्छे बुरे बिताये....!!

हमने कुछ बातें आपस में बांटी और कुछ राज़ छुपाये....!
बैठ के बातें करते-करते दो चाय के घूट लगाये....!!
बातों ही बातों में हमने कुछ प्यारे ख्वाब सजाये....!
हम अक्सर साथ में रोये भी और साथ में ही मुस्काए....!!

हम लोग अलग-अलग थे लेकिन फिर भी सब साथ में आये....!
कुछ आदत छोड़ी हमने अपनी और कुछ बदलाव भी लाये....!!
हमने छोटी-छोटी बातें समझी और रिश्ते नए बनाये....!
चेहरों को हमने पढ़ना सीखा और ग़म में भी न मुरझाये....!!

कुछ लोग मुझे मेरे जीवन के.....................................!
कुछ छूट गए पीछे ही और.......................................!!

Friday, October 8, 2010

वो...!!

है वो कुछ-कुछ मेरे ही जैसा, और थोड़ा मुझसे अलग भी है....!
कुछ बातों में साथ है मेरे, और कुछ में मुझसे जुदा भी है....!!

मेरे ही संग-संग चलता है, और मुझसे खफा-खफा भी है....!
कभी मेरे संग कर खिल कर हस्ता है, और मेरे अश्कों में साथ भी है....!!

मुझसे अक्सर मिलता है वो, और खुद में सिमटा-सिमटा भी है....!
ख़ुशी में मेरे संग रहता है, और ग़म में मुझसे लिपटा भी है....!!

मुझसे सारी बातें कहता है, और कभी बहुत चुप-चाप भी है....!
रहता है मुझमे मेरा बनकर, और गैरों में मेरे साथ भी है....!!

मुझसे थोड़ा अंजाना है वो, और गहरी पहचान भी है....!
कभी मेरे संग लड़ता है वो, और फिर खुद से नाराज भी है....!!

मुझसे कुछ-कुछ उलझा सा है वो, और बेहद आसान भी है....!
सब बातों का मतलब जानता है, और जानके फिर अंजान भी है....!!

है वो कुछ-कुछ मेरे ही जैसा........................................!
कुछ बातों में साथ है मेरे.............................................!!

Sunday, September 26, 2010

कभी-कभी...!!

कभी-कभी मन को लगता है, ये जो भी है बेमानी है....!
थोड़ी सी ख़ामोशी है, और थोड़ा सा खारा पानी है....!!

एक पल प्यारी खुशी है, और एक पल रात बड़ी अंधियारी है....!
कुछ नग्मो में दर्द छुपा है, और कुछ में हसी सुहानी है....!

कभी-कभी हर रस्ते पर, कोई बीती हुई कहानी है....!
हर मंजिल पर लोग नए हैं, अपनों की कमी पुरानी है....!!

कुछ बातें बेमतलब हैं, और कुछ में मतलब भारी है....!
नाम नए-नए हैं अक्सर, और कुछ से पहचान पुरानी है....!!

कभी-कभी कुछ खास है मुझमे, और कभी कहीं कुछ खाली है....!
अंजान दिशाएं हैं सारी, हर ख्वाब में वही कहानी है....!!

जीने की गुंजाइश भी कम है, और हाथ दुआ से खाली हैं....!
कभी-कभी ग़म दूर कहीं है, और दुनिया रंगों की प्याली है....!!

कभी-कभी मन को लगता है...................................!
थोड़ी सी ख़ामोशी है............................. ..................!!

Saturday, September 18, 2010

कुछ नहीं है ये मगर...!!

सूरज को ढलते मैंने बरसों से देखा नहीं....!
हो गए हैं दिन बहुत मै चैन से सोया नहीं....!!
आवाज में ख़ामोशी है कुछ और दुआ है बेअसर....!
नाम अंजाना है मेरा, खुद से हूँ मै बेखबर....!!
कुछ नहीं है ये मगर, फिर भी है क्यूँ इतना असर....!
कुछ नहीं है ये मगर, फिर क्यों दुआ है बेअसर....!!

अंजान है सब मेरे लिए, कोई जाना पहचाना नहीं....!
सब लोग मुझसे हैं खफा, कोई मिलने आता नहीं....!!
वक़्त काफी है हो चुका, सब भूल गए हैं मुझको....!
परछाई भी मेरी तो अब, कैद समझती है खुद को....!!
कुछ नहीं है ये मगर फिर........................!
कुछ नहीं है ये मगर फिर .......................!!

मौसम का बदलना भी मुझे तो, अब नज़र आता नहीं....!
कोरे कागज जैसा है सब, कुछ लिखा भाता नहीं....!!
सब पूछते हैं घर का पता, नाम और पहचान भी....!
हूँ मै खुद से थोडा खफा, और कुछ नाराज़ भी....!!
कुछ नहीं है ये मगर फिर........................!
कुछ नहीं है ये मगर फिर .......................!!

आवाज देता हूँ तुझे, पर तू मुझे सुनता नहीं....!
सब यहाँ चुप-चाप हैं, कोई बात ही करता नहीं....!!
नकली हसी हसतें हैं सब, दिल में सभी के चोर है....!
खामोश बैठा हूँ मै लेकिन, सब तरफ बस शोर है....!!
कुछ नहीं है ये मगर फिर........................!
कुछ नहीं है ये मगर फिर .......................!!

Sunday, September 12, 2010

शीशों की दुनियाँ...!!

मै शीशों की इस झूठी दुनियाँ में ऐसे कैसे जी पाउँगा....!
तेरा साथ न मिल पाया तो मै उलझन में खो जाऊंगा....!!

सब बेगाने लोग मिलेंगे और बेगानी बातें होंगी....!
तेरे बिन मीलों सन्नाटा और सारी राहें खाली होंगी....!!

आवाजों में बेहद ख़ामोशी और आँखों में गहरी लाली होगी....!
सूरज का रंग फीका होगा और रात सुर्ख काली होगी....!!

मै खुद की ही सूरत को आईने में धुंधला सा पाउँगा....!
याद करूँगा बीती बातें और भूखा ही सो जाऊंगा....!!

सरगम में भी सुर कम होंगे और महफ़िल खाली-खाली होगी....!
आँखों के नीचे काली झाँई और परछाई मेरी आधी होगी....!!

मै शीशों की इस झूठी दुनियाँ में....................!
तेरा साथ न मिल पाया तो मै.......................!!

अहसास...!!

जब मै उसको देखूं तो चेहरे का रंग बदल जाना....!
महफ़िल से अक्सर उसके बिन तनहा घर वापस आ जाना....!!

उसकी बातें करके फिर धीरे-धीरे चुप हो जाना....!
और सर्द हवा के चलने से उसके होठों का फट जाना....!!

खामोश रात के सन्नाटे में उसके अहसास से जग जाना....!
आवाज को उसकी सुन करके कलियों का धीमे से खिल जाना....!!

कोई ग़ज़ल,गीत और नज्म लिखूं तो उसका हर लफ्ज में आ जाना....!
और सावन में बदरी बनकर उसका अम्बर पे छा जाना....!!

मेरी हर एक उलझन को उसका पलभर में सुलझा जाना....!
कोई बात अगर न सही लगे उस बात पे मुझसे लड़ जाना....!

उसकी पलकों पे कोहरे की हल्की चादर का बिछ जाना....!
और गर्मी के मौसम में उसके माथे पे पसीना आ जाना....!!

उसके हाथों की महंदी का रंग सुर्ख गुलाबी हो जाना....!
और अक्सर जाते-जाते उसका कुछ बातें दोहरा जाना....!!

जब मै उसको देखूं तो.........................................!
महफ़िल से अक्सर उसके बिन ...........................!!

Thursday, September 9, 2010

वो बचपन...!!

जब बचपन में छुप-छुप कर हम पतंग उड़ाया करते थे....!
और माली की छोटी बगिया से जब आम चुराया करते थे....!!
जब किसी के बनते घर में हम लुक-छुप जाया करते थे....!
और बैट-बाल में जब अक्सर हम लड़ भी जाया करते थे....!!
अब तब की बातें याद करूँ तो हसना-रोना आ जाता है....!
आँखों में थोड़ा सा पानी और मन भरमा सा जाता है....!!

जब शाम को घर से बाहर जाने की जल्दी होती थी....!
और बातों ही बातों में जब टांग खिचाई होती थी....!!
जब होली पर पक्के रंग से यारों को भिगाया जाता था....!
और उनकी शक्लों को दिखा के फिर लोगों को हसाया जाता था....!!
अब तब की बातें याद करूँ तो..............................!
आँखों में थोड़ा सा पानी और................................!!

जब पेपर में कभी हमारे नंबर कम आया करते थे....!
और घर जाकर बतलाने में हम घबराया करते थे....!!
जब दीवाली में चुन कर हम कुछ नए पठाखे लाते थे....!
और यारों के संग मिलकर जब जोर से उन्हें छुड़ाते थे....!!
अब तब की बातें याद करूँ तो..............................!
आँखों में थोड़ा सा पानी और................................!!

जब जरा-जरा सी बातों पे हम खुलकर हस जाया करते थे....!
और रोने में भी जब अक्सर हम हद कर जाया करते थे....!!
लोगों के लाख मानाने पर मुश्किल से माना करते थे....!
और मान भी जाया करते तो शर्तें बतलाया करते थे....!!
अब तब की बातें याद करूँ तो..............................!
आँखों में थोड़ा सा पानी और................................!!

Tuesday, September 7, 2010

जो ये होता है...!!

गुस्से से हाथ झटक देना, और आँखों में नीर का आ जाना....!
तन्हाई में घण्टों चुप रहना, और कोई याद पुरानी आ जाना....!!
धड़कन का कुछ धीमे होना, और चाँद का जल्दी आ जाना....!
परछाई का झिलमिल हो जाना, और खुद का खुद में खो जाना....!
क्या है जो ये होता है, ये भ्रम है या फिर धोखा है....!
कोई रोग है या अहसास कोई, या भोले से मन का राग कोई....!!

कुछ बातों का डर लगना, और खुली हवा में पर लगना....!
मन का खाली-खाली होना, और हर पल का सवाली होना...!!
दिल के पर्दों का नम होना, और छोटी बातों का ग़म होना....!!
तारों का चाँद के संग आना, और मस्त हवा का लहराना....!!
क्या है जो ये होता है.......................................!
कोई रोग है या अहसास कोई.............................!!

दिन का जल्दि से कट जाना, और खुलि किताबें रह जाना....!
औरों की न बातें करना, कुछ सोचते-सोचते सो जाना....!!
बैठे-बैठे ही मुस्काना, और श्याही का ख़त पर बह जाना....!
आवाज किसी की न सुनना, और बिना बात के लड़ जाना....!!
क्या है जो ये होता है.........................................!
कोई रोग है या अहसास कोई............................!!

मौसम का सर्द से नम होना, और दुनिया के शोर का कम होना....!
हवा का पर्दों को छू कर जाना, और बारिश का सुबह-सुबह आना....!!
कोई चीज़ पुरानी ग़ुम होना, और सोच के फिर गुमसुम होना....!
अक्सर बातों को दोहराना, हर दुआ में तेरा नाम आना....!!
क्या है जो ये होता है...........................................!
कोई रोग है या अहसास कोई..............................!!

Friday, September 3, 2010

पतझर पन्ने और पानी...!!

जब कभी सुनहरी हवा मेरे दरवाजे से होकर जाती है....!
और जब पतझर के सूखे पत्ते हवा के संग बह आते हैं....!!
जब सावन की पहली बोछारें आँगन में आ जाती हैं....!
और जब मिट्टी की सौंधी खुशबु खिड़की से भीतर आती है....!!
तब जीवन के मौसम मुझको अजब सुहाने लगते हैं....!
सारी दुनिया के रंग मुझे तब खुले फुहारे लगते हैं....!!

जब रंग-बिरंगे फूल हवा में लहराते इठलाते हैं....!
और जब कापी के कोरे पन्ने श्याही से मेल मिलाते हैं....!!
जब तितली के पंख सुनहरे कोई जादू सा दिखलाते हैं ....!
और जब जुगनू कभी रात में भ्रम का जाल बिछाते हैं....!!
तब जीवन के मौसम मुझको..................................!
सारी दुनिया के रंग मुझे तब...................................!!

जब रोज सवेरे सूरज कुछ जल्दी ही उग आता है....!
और शाम का सूरज सागर की लहरों में घुल जाता है....!!
जब रात में तारे आसमान की चादर को चमकाते हैं....!
और जब चाँद कटोरी जैसे झूल हवा में जाता है....!!
तब जीवन के मौसम मुझको..................................!
सारी दुनिया के रंग मुझे तब...................................!!