Thursday, March 10, 2011

धीमे-धीमे चलते-चलते...!!





















धीमे-धीमे चलते-चलते कब राह ख़त्म कुछ पता नहीं....!
शायद तू बेहोशी में है कुछ होश तुझे अब रहा नहीं....!!

तेरी आँखों का ये काजल अश्कों संग अधरों तक बह आया....!
सिसकी भर के रोते-रोते दम भी तेरा है भर आया....!!

होठों के बीच पड़ा आंसू नमकीन जुबां से टकराया....!
आखों के डोरे लाल हुए पलकों पर पानी छाया....!!

जी करता है तुझको बस रोते सिसकी भरते देखूं....!
जब तू रो कर थक जाये तब तुझसे ग़म की बातें पूछूँ....!!

सारी बातों को घुमा दूँ कुछ मतलब उल्टा-पुल्टा करदूं....!
तू रोते में हस जाये मै कुछ ऐसा किस्सा कर दूँ....!!

चेहरे पर तेरे हसी रहे खुशियों की कलियाँ खिल जाएँ....!
कितना सुकून सा मिलता है जब तू यूँ खिलकर मुस्काए....!!

धीमे-धीमे चलते-चलते............................!
शायद तू बेहोशी में है.......................... ....!!

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