Sunday, April 17, 2011

कितने लोगों से बात करूँ...!!



कितने लोगों से बात करूँ कितने लोगों से सच बोलूं....!
किसको मैं अपना यार कहूँ और किसको नज़रों से तौलूं....!!
जो हाथ बढ़ा दे तू अपना तो फिर मैं अपना भ्रम तोडूं....!
इस चुप सी खामोश पहेली में मैं कुछ मिट्टी के रंग घोलूं....!!

सपनों को पलकों पे रख कर होले से ये आँखे मूंदुं....!
बिखरी सी अपनी यादों को दोनों हाथों से संग लेलूं....!!
लिखकर रखलूं कुछ बातों को और कल आकर खुद से बोलूं....!
इस खुले आसमां के नीचे मैं चंदा की चादर में सोलूं....!!

अपनी लकड़ी की अलमारी से कुछ फटे-पुराने ख़त खोलूं....!
उनपर लिखे अल्फाजों को दोहराकर मैं फिर से बोलूं....!!
गहराई में उतरूं थोड़ा और हर बात का कुछ मतलब खोजूं....!
फिर बीती यादों में जाऊ और तुझको एक बार मैं फिर सोचूं....!!

कितने लोगों से बात करूँ...........................!
किसको मैं अपना यार कहूँ और..................!!

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