Saturday, March 17, 2012

जुस्तजू ...!!



















है जुस्तजू ये मेरी किसी दिन यूहीं निकल जाऊं....!
पता दूँ ना किसी को भी और ना संग ले जाऊं....!!

हवा हो जाऊं कुछ इस तरह के नज़रों में ना आ पाऊं....!
पकड़ एक छोर अम्बर का मै दूजे छोर उड़ जाऊं....!!

दिशाओं से दोस्ती करलूं जिधर चाहूँ वहां जाऊं....!
परिंदों की तरह मै भी गगन की सैर कर आऊं....!!

खुमारी हो मुझे ऐसी के मै खुद में ही खो जाऊं....!
हैं जितने रंग दुनियाँ के उन्ही रंगों से रंग जाऊं....!!

तलाशी लूँ हवाओं की समंदर से लिपट जाऊं....!
बाहं फैलाये ये धरती और बस मै बिखर जाऊं....!

है जुस्तजू ये मेरी..................................!
पता दूँ ना किसी को भी...........................!!

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