Sunday, April 22, 2012

ख़ामोशी...!!



















                             
एक अजीब सी ख़ामोशी है यहाँ चारो तरफ....!
जुबां पर कोई लफ्ज़ चाह कर भी नहीं आता....!!
ना जाने क्यूँ भाग रही है ये पागल दुनियां....!
इसे जीने का कोई मकसद नज़र ही नहीं आता....!!

साजो-सामान जुटा तो लिया जैसे-तैसे करके....!
कैसे जीना है इसके संग समझ ही नहीं आता....!!
तमाम उम्र गुज़र रही है भागते हांफ्ते....!
किसे कहते थे सुकून याद ही नहीं आता....!!

खुद को भूल गए वक़्त के साथ भागते-भागते....!
और कहाँ छूट गया वक़्त नज़र ही नहीं आता....!!
कैसे उलझी है ये मासूम सी प्यारी हस्ती....!
के अपना वजूद ही इसको समझ में नहीं आता....!!

एक अजीब सी ख़ामोशी.....................!
जुबां पर कोई लफ्ज़.........................!!

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