जैसा पहले होता था अब वैसा कहीं नहीं होता....!
तेरे और मेरे जाने का अब रस्ता एक नहीं होता....!!
मै गिर जाता हूँ जब चलते-चलते कोई अपना हाथ नहीं देता....!
अब बंद किताबों के भीतर कोई किस्सा खास नहीं मिलता....!!
बंद घरों में रहने की लोगों को आदत अब अच्छी लगती है....!
उगते सूरज को देख भी लें इसकी फुरसत कम मिलती है....!!
अब अपनी ही बातों में ये मशरूफ जमाना रहता है....!
खुद से भी बात नहीं करता मेरे संग भी चुप रहता है....!!
कुछ लोग बहाने देते हैं और वजह मुझे बतलाते हैं....!
के वो मेरे रस्ते से निकले भी और मिलने से क्यों कतराते हैं....!!
जैसा पहले होता था अब......................................!
तेरे और मेरे जाने का अब रस्ता.................................!!
तेरे और मेरे जाने का अब रस्ता एक नहीं होता....!!
मै गिर जाता हूँ जब चलते-चलते कोई अपना हाथ नहीं देता....!
अब बंद किताबों के भीतर कोई किस्सा खास नहीं मिलता....!!
बंद घरों में रहने की लोगों को आदत अब अच्छी लगती है....!
उगते सूरज को देख भी लें इसकी फुरसत कम मिलती है....!!
अब अपनी ही बातों में ये मशरूफ जमाना रहता है....!
खुद से भी बात नहीं करता मेरे संग भी चुप रहता है....!!
कुछ लोग बहाने देते हैं और वजह मुझे बतलाते हैं....!
के वो मेरे रस्ते से निकले भी और मिलने से क्यों कतराते हैं....!!
जैसा पहले होता था अब......................................!
तेरे और मेरे जाने का अब रस्ता.................................!!
जैसा पहले होता था अब वैसा कहीं नहीं होता....!
ReplyDeleteतेरे और मेरे जाने का अब रस्ता एक नहीं होता....
अच्छी नज्म बन पड़ी है। जारी रखिये।
ek din hoga vo bhi ...
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