Monday, December 13, 2010

चर्चा तेरा...!!






















तू महफ़िल से हो बाहर, या मौजूद रहे महफ़िल में तू....!
चर्चा तेरा ही होता है, होता है सबकी जुबां पे तू....!!
तुझको कोई रात का चाँद कहे, कोई कहता सावन की घटा है तू....!
खो देता है होश कोई, और बेहोशी में भी रहता है तू....!!

कोई छुप कर देख रहा तुझको , और पलकों को न झपकाता है....!
कोशिश करता है हसने की, और धीमे से मुस्काता है....!!
बहका-बहका सा चलता है, हर कदम पे वो गिर जाता है....!
बारिश में तेरी राह तके, और भीग के तर हो जाता है....!!

तू हस कर बात करे जिससे, वो पगला सा हो जाता है....!
अपना ना होश रहे उसको, और खुद से ही बतियाता है....!!
आईने में देखे खुद को, और इठलाता, इतराता है....!
खुश रहता है दिन भर वो, फिर महफ़िल नई सजाता है....!!

तू महफ़िल से हो बाहर......................................!
चर्चा तेरा ही होता है.........................................!!

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