Friday, December 24, 2010

बीत गया...!!















                        बीत गया ये दिन भी यूहीं ये रात भी यूहीं जाएगी....!
बस तेरे मेरे बीच की कुछ प्यारी बातें रह जाएँगी....!!

कल फिर सूरज निकलेगा कल फिर अमराई छाएगी....!
कल ख़ुशी मेरे दरवाजे पर दस्तक देने फिर आएगी....!!

नींद से भारी मेरी पलकें फिर गहरी नींद में जाएँगी....!
फिर अक्सर खाली बैठे-बैठे यादें खुद को दोहराएंगी....!!

कुछ दीवारों के पीछे से फिर कुछ आवाजें आएँगी....!
कभी नमी होगी आखों में और कभी हसी भी आएगी....!!

कुछ बीती बातें मुझको मेरी पहचान बतायेंगी....!
कहीं कमी तो है बाकी कुछ ऐसा मुझे जताएंगी....!!

बीत गया ये दिन भी यूहीं......................................!
बस तेरे मेरे बीच की कुछ ......................................!!

Monday, December 13, 2010

चर्चा तेरा...!!






















तू महफ़िल से हो बाहर, या मौजूद रहे महफ़िल में तू....!
चर्चा तेरा ही होता है, होता है सबकी जुबां पे तू....!!
तुझको कोई रात का चाँद कहे, कोई कहता सावन की घटा है तू....!
खो देता है होश कोई, और बेहोशी में भी रहता है तू....!!

कोई छुप कर देख रहा तुझको , और पलकों को न झपकाता है....!
कोशिश करता है हसने की, और धीमे से मुस्काता है....!!
बहका-बहका सा चलता है, हर कदम पे वो गिर जाता है....!
बारिश में तेरी राह तके, और भीग के तर हो जाता है....!!

तू हस कर बात करे जिससे, वो पगला सा हो जाता है....!
अपना ना होश रहे उसको, और खुद से ही बतियाता है....!!
आईने में देखे खुद को, और इठलाता, इतराता है....!
खुश रहता है दिन भर वो, फिर महफ़िल नई सजाता है....!!

तू महफ़िल से हो बाहर......................................!
चर्चा तेरा ही होता है.........................................!!

Friday, December 10, 2010

जैसा पहले होता था...!!

जैसा पहले होता था अब वैसा कहीं नहीं होता....!
तेरे और मेरे जाने का अब रस्ता एक नहीं होता....!!

मै गिर जाता हूँ जब चलते-चलते कोई अपना हाथ नहीं देता....!
अब बंद किताबों के भीतर कोई किस्सा खास नहीं मिलता....!!

बंद घरों में रहने की लोगों को आदत अब अच्छी लगती है....!
उगते सूरज को देख भी लें इसकी फुरसत कम मिलती है....!!

अब अपनी ही बातों में ये मशरूफ जमाना रहता है....!
खुद से भी बात नहीं करता मेरे संग भी चुप रहता है....!!

कुछ लोग बहाने देते हैं और वजह मुझे बतलाते हैं....!
के वो मेरे रस्ते से निकले भी और मिलने से क्यों कतराते हैं....!!

जैसा पहले होता था अब......................................!
तेरे और मेरे जाने का अब रस्ता.................................!!

Sunday, December 5, 2010

तू जो आकर देखेगा...!!

तू जो आकर देखेगा तो अब सब कुछ सिमटा पायेगा....!
अब तो मेरा अपना घर भी एक ताले से लिपटा पायेगा....!!

उसकी सारी दीवारों पर मकड़ी के जाले होंगे....!
और रखी हुई तस्वीरों पर भी धूल ने परदे डाले होंगे....!!

जब तू मुड कर देखेगा तो तेरे पैर छपे होंगे....!
और मेरे कुछ बर्तन भी अब तो शायद जंग लगे होंगे....!!

कहीं किसी कोने में अब भी मेरी याद रखी होंगी....!
और सालों से बंद पड़ी खिड़की अब मुश्किल से खुलती होंगी....!!

घर के सारे नलके भी अब तो बिलकुल जाम पड़े होंगे....!
और ख़त लिखे हुए मेरे यूही गुमनाम पड़े होंगे....!!

मेरे घर के गलियारे में ख़ामोशी का सन्नाटा होगा....!
और अब मुझसे मिलने भी तो कोई नहीं आता होगा....!!

तू जो आकर देखेगा तो अब..................................!
अब तो मेरा अपना घर भी ..................................!!