Wednesday, July 27, 2011

ओ साकी...!!


चल सुन आज ज़रा ओ साकी मैखाने को चलते हैं....!
हम भी देखें लोग क्यूँ अक्सर बोराए से फिरते हैं....!!

इस पानी के नशे में लोग क्यूँ खुद से ही बतलाते हैं....!
ग़म में अक्सर हसते  हैं और खुशी में नीर बहाते हैं....!!

इस पानी के जादू से हमको भी वाकिफ होना है....!
पी कर हम भी देखेंगे की क्या माटी क्या सोना है....!!

चल अपने-अपने प्यालों में हम भी मै लेकर आते हैं....!
क्या सुरूर है ऐसा इसमें कुछ इसकी खबर लगाते हैं....!!

हाँ जब तक ये बोतल प्यालों में पूरी-पूरी ना आ जाये....!
तू उठ कर ना जाना साकी जब तक जाम ना थम जाएँ.....!!

जब आधा होश रहे तुझको और आधा कहीं चला जाए....!
और मै का सारा सागर ही जब तेरी आँखों में लहराए....!!

निकलेंगे तब मैखाने से जब दो के चार नज़र आएँ....!
और जब तेरी जुबाँ भी तुझसे आधा ही साथ निभा पाए....!!

चल सुन आज ज़रा ओ साकी......................!
हम भी देखें लोग क्यूँ अक्सर......................!!

1 comment:

  1. after a long time....
    i saw a mail from antarman..

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