Sunday, October 9, 2011

मुमकिन है...!!














        बहुत मुमकिन है शायद किसी दिन शाम थम जाए....!
तू मिलने आये मुझसे और पल यूँही ठहर जाए....!!
नज़रें झुकाना ही तेरा जब इज़हार बन जाए....!
पहर बीते न ये और वक़्त की भी नब्ज़ जम जाए....!!

फिर हो शुरू यूँ गुफ्तगू का सिलसिला तुझसे....!
यूँ सारा जहाँ जैसे यहीं आकर सिमट जाए....!!
इन खामोश निगाहों से तू वो बात भी कहदे....!
जिस बात को कहने में सदियाँ सी गुजर जाएँ....!!

बिखर जाए कुछ इस तरह तू मेरी बाहों में आकर के....!
यूँ जिस तरह सागर में सांझ का सूरज पिघल जाए....!!
लिपट कर मेरे ही अक्स से तू कुछ यूँ सिमट जाए....!
के जिस्म मेरा रहे मुझमे और तू रूह बन जाए....!!

बहुत मुमकिन है शायद..........................!
तू मिलने आये मुझसे.............................!!

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