Monday, January 7, 2013

नहीं मिलता...!!

























इस शहर में कहीं अब कोई  इंसान नहीं मिलता....!
चलते फिरते पुतलों का कोई इमान नहीं मिलता....!!
ये जिस्म सांस तो लेते हैं बहोत जोर-जोर से....!
पर इन मुफ्त की साँसों का कोई दाम नहीं मिलता....!!
कफ़न ओढ़ कर चलती हैं यहाँ जिन्दा लाशें....!
इनकी इस कद्र लाचारी का कोई नाम नहीं मिलता....!!
चुप चाप निकल जाते हैं ये आँखें मूँद कर अपनी....!
और इस बेशर्म हया का इन्हें कोई ईनाम नहीं मिलता....!!
ये बात-चीत तो करतें हैं घरों में बैठ कर अपने....!
पर यहाँ सिर्फ बातों से ही तो इन्साफ नहीं मिलता....!!
इस शहर में कहीं अब..............................!
चलते फिरते पुतलों का..........................!!

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