Saturday, September 18, 2010

कुछ नहीं है ये मगर...!!

सूरज को ढलते मैंने बरसों से देखा नहीं....!
हो गए हैं दिन बहुत मै चैन से सोया नहीं....!!
आवाज में ख़ामोशी है कुछ और दुआ है बेअसर....!
नाम अंजाना है मेरा, खुद से हूँ मै बेखबर....!!
कुछ नहीं है ये मगर, फिर भी है क्यूँ इतना असर....!
कुछ नहीं है ये मगर, फिर क्यों दुआ है बेअसर....!!

अंजान है सब मेरे लिए, कोई जाना पहचाना नहीं....!
सब लोग मुझसे हैं खफा, कोई मिलने आता नहीं....!!
वक़्त काफी है हो चुका, सब भूल गए हैं मुझको....!
परछाई भी मेरी तो अब, कैद समझती है खुद को....!!
कुछ नहीं है ये मगर फिर........................!
कुछ नहीं है ये मगर फिर .......................!!

मौसम का बदलना भी मुझे तो, अब नज़र आता नहीं....!
कोरे कागज जैसा है सब, कुछ लिखा भाता नहीं....!!
सब पूछते हैं घर का पता, नाम और पहचान भी....!
हूँ मै खुद से थोडा खफा, और कुछ नाराज़ भी....!!
कुछ नहीं है ये मगर फिर........................!
कुछ नहीं है ये मगर फिर .......................!!

आवाज देता हूँ तुझे, पर तू मुझे सुनता नहीं....!
सब यहाँ चुप-चाप हैं, कोई बात ही करता नहीं....!!
नकली हसी हसतें हैं सब, दिल में सभी के चोर है....!
खामोश बैठा हूँ मै लेकिन, सब तरफ बस शोर है....!!
कुछ नहीं है ये मगर फिर........................!
कुछ नहीं है ये मगर फिर .......................!!

4 comments:

  1. good one..
    keep writing..

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  2. i can feel the pain of separation... good going vibhu.. expecting lots more frm u......

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  3. yad aa gaye purane din ...or jo chl rahe hain vo b kuch alag tarah se .... jaldi publish kar or likh k ..

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