Sunday, September 12, 2010

शीशों की दुनियाँ...!!

मै शीशों की इस झूठी दुनियाँ में ऐसे कैसे जी पाउँगा....!
तेरा साथ न मिल पाया तो मै उलझन में खो जाऊंगा....!!

सब बेगाने लोग मिलेंगे और बेगानी बातें होंगी....!
तेरे बिन मीलों सन्नाटा और सारी राहें खाली होंगी....!!

आवाजों में बेहद ख़ामोशी और आँखों में गहरी लाली होगी....!
सूरज का रंग फीका होगा और रात सुर्ख काली होगी....!!

मै खुद की ही सूरत को आईने में धुंधला सा पाउँगा....!
याद करूँगा बीती बातें और भूखा ही सो जाऊंगा....!!

सरगम में भी सुर कम होंगे और महफ़िल खाली-खाली होगी....!
आँखों के नीचे काली झाँई और परछाई मेरी आधी होगी....!!

मै शीशों की इस झूठी दुनियाँ में....................!
तेरा साथ न मिल पाया तो मै.......................!!

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