आ बैठ जरा मेरे संग भी, मेरी उलझन को भी सुलझा....!
क्यूँ होता है ये मेरे संग ही, तू मुझको इसका हल बतला....!!
चुप रहता है मन मेरा, मै नहीं किसी से कुछ कहता....!
मेरी अपनी ख़ामोशी का, तू मुझको कुछ मतलब समझा....!!
सारी बातों को ध्यान से सुन, और इनकी गहराई तक जा....!
समझ जरा मुझको थोड़ा, और क्या है मुझको मर्ज़ बता....!!
मेरे माथे की सलवटों को पढ़, कुछ दूर तलक मेरे संग आ....!
कुछ सुन मेरी कुछ सुना मुझे, मुझको कोई प्यारा ख्वाब दिखा....!!
सारी आदतों से वाकिफ है तू, है कहाँ कमी मुझको बतला....!
हिस्सा हूँ या किस्सा हूँ मै, तू मुझे मेरा होना समझा....!!
आ बैठ जरा मेरे संग भी.......................................!
क्यूँ होता है ये मेरे संग ही....................................!!
No comments:
Post a Comment