Friday, January 14, 2011

आईना...!!

























मै आज जरा बाहर निकला बाजार लगा था रस्ते में....!
कुछ खास नहीं मुझको भाया एक आईना लाया सस्ते में....!!
कागज के बंद लिफाफे से मैंने उसको बाहर रक्खा....!
घर का एक अच्छा कोना ढूंढा और वहां उसे लाकर रक्खा....!!
आईना कोने में रख कर फिर शाम का बिस्तर लगा दिया....!
बत्ति को मैंने बंद किया और आँखों को अपनी मूँद लिया....!!
सुबह सवेरे आँख खुली ठंडे पानी से मुह धोया....!
मै आईने के पास गया और उसमे अपना चेहरा देखा....!!
देखा मैंने कुछ गौर से जो मुझको कुछ अलग नज़र आया....!
कुछ तो बदला-बदला सा था या मुझको केवल भ्रम सा था....!!
चेहरे का रंग उड़ा सा था और आँखों के नीचे झाइयाँ थी....!
माथे पर धुंधली सलवटें सी थीं और गाल थे बेहद फटे हुए....!!
जी रहा था मै पुतले जैसा उस दिन कुछ ऐसा लगा मुझे....!
सब कुछ था लुटा हुआ जैसे और भीतर से सब खाली सा था....!!
पहचान मुझे मालूम न थि और हूँ क्या मै था नहीं पता....!
आईने से कुछ मदद मिली पता लगा पहचान का कुछ....!!
अगर न मै बाहर जाता और आईना न लेकर आता....!
खबर मुझे कैसे लगती और कौन मुझे सच बतलाता....!!
मै आज जरा बाहर निकला.............................!
कुछ खास नहीं मुझको भाया...........................!!

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