Tuesday, November 23, 2010

एक दिन...!!

जब एक दिन चुपके से सूरज मेरी खिड़की पर आएगा ....!
और पिघल के अपनी ही गर्मी से वो काजल बन जायेगा....!!
जब एक दिन बादल की परछाई से चाँद निकल कर आएगा....!
और खुद की सर्द हवा से ही वो बर्फीला हो जायेगा....!!

जब मेरी कागज की कश्ती को दरिया साहिल तक लायेगा....!
और एक दिन जब खुद मुझसे मिलने वो मेरे घर आएगा....!!
जब हलकी सी सर्दी से ही कोहरा काफी छा जायेगा....!
और जब सूरज अपनी धूप का मुझसे इंतज़ार करवाएगा....!!

जब सब लोग सुनेंगे मुझको पर वो अन्सूना कर जायेगा....!
और वक़्त हरे ज़ख्मों को भी जब आसानी से भर जायेगा....!!
जब पूरे दिन का आधा हिस्सा बस बातों में जायेगा....!
और जब खुद का लिखा हुआ मुझको ज्यादा ही भायेगा....!!

तब मुझको इस दुनिया का कुछ अंदाज़ा सा लग जायेगा....!
और शायद तब खुदसे मिलने का मज़ा अलग ही आएगा....!!
तब मेरे सारे अल्फाजों को एक जरिया मिल जायेगा....!
और मेरी कुछ उम्मीदों को भी अपना घर मिल जायेगा....!!

जब एक दिन चुपके से सूरज................................!
और पिघल के अपनी ही गर्मी से...........................!!

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