तू जो आकर देखेगा तो अब सब कुछ सिमटा पायेगा....!
अब तो मेरा अपना घर भी एक ताले से लिपटा पायेगा....!!
उसकी सारी दीवारों पर मकड़ी के जाले होंगे....!
और रखी हुई तस्वीरों पर भी धूल ने परदे डाले होंगे....!!
जब तू मुड कर देखेगा तो तेरे पैर छपे होंगे....!
और मेरे कुछ बर्तन भी अब तो शायद जंग लगे होंगे....!!
कहीं किसी कोने में अब भी मेरी याद रखी होंगी....!
और सालों से बंद पड़ी खिड़की अब मुश्किल से खुलती होंगी....!!
घर के सारे नलके भी अब तो बिलकुल जाम पड़े होंगे....!
और ख़त लिखे हुए मेरे यूही गुमनाम पड़े होंगे....!!
मेरे घर के गलियारे में ख़ामोशी का सन्नाटा होगा....!
और अब मुझसे मिलने भी तो कोई नहीं आता होगा....!!
तू जो आकर देखेगा तो अब..................................!
अब तो मेरा अपना घर भी ..................................!!
अब तो मेरा अपना घर भी एक ताले से लिपटा पायेगा....!!
उसकी सारी दीवारों पर मकड़ी के जाले होंगे....!
और रखी हुई तस्वीरों पर भी धूल ने परदे डाले होंगे....!!
जब तू मुड कर देखेगा तो तेरे पैर छपे होंगे....!
और मेरे कुछ बर्तन भी अब तो शायद जंग लगे होंगे....!!
कहीं किसी कोने में अब भी मेरी याद रखी होंगी....!
और सालों से बंद पड़ी खिड़की अब मुश्किल से खुलती होंगी....!!
घर के सारे नलके भी अब तो बिलकुल जाम पड़े होंगे....!
और ख़त लिखे हुए मेरे यूही गुमनाम पड़े होंगे....!!
मेरे घर के गलियारे में ख़ामोशी का सन्नाटा होगा....!
और अब मुझसे मिलने भी तो कोई नहीं आता होगा....!!
तू जो आकर देखेगा तो अब..................................!
अब तो मेरा अपना घर भी ..................................!!
hmm
ReplyDeletedeep thinking..